25 विक्रम बेताल की कहानियां | Vikram Betal Ki Kahani

विक्रम और बेताल का नाम कौन नहीं जानता। बेताल के द्वारा विक्रमादित्य को सुनाई गई कहानियां बच्चे और बूढ़े बड़ी उत्सुकता के साथ सुनते है।

आइए विक्रम और बेताल के बारे

विक्रम बेताल की कहानियां

विक्रम बेताल की कहानियां | Vikram Betal Ki Kahaniyan | बेताल पच्चीसी

राजा विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। उन्होंने किसी योगी के कहने पर बेताल को पीपल के पेड़ से उतारकर शमशान घाट से योगी के पास लाने के लिए गए थे लेकिन बेताल चालाकी में कम नहीं था। वह बार बार राजा विक्रमादित्य के हाथ से छूट कर पेड़ पर वापस चढ़ जाता था।

जब भी राजा विक्रम बेताल को ले कर चलने की कोशिश करते तो बेताल एक शर्त पर चलने को तैयार हुआ। बेताल की शर्त थी कि राजा विक्रमादित्य मार्ग में कुछ भी नही बोलेंगे। यदि बोले तो फिर से पेड़ पर चढ़ जाने के लिए बोला ।

राजा विक्रमादित्य ने यह शर्त स्वीकार कर ली। क्योंकि बेताल के सामने उनकी शक्ति कमजोर पड़ती थी।

रास्ते में चलते समय बेताल राजा विक्रमादित्य को कहानी सुनने की सलाह दी। जिससे रास्ता आसानी से कट जायेगा और इस भयानक डरावने जंगल में मनोरंजन भी हो जायेगा।

राजा विक्रमादित्य कुछ भी नही बोल सकते थे। वो बेताल के वचनों में बंधे हुए थे। हर कहानी के अंत में बेताल राजा विक्रमादित्य से एक सवाल पूछता था उस सवाल का जवाब जानने के लिए बेताल के अलावा कुछ गन्धर्व, देवतागण, ऋषिगण भी उत्सुकता रखते थे।

राजा विक्रमादित्य बड़े ही प्रतापी तथा न्याय प्रिय राजा थे। राजा विक्रमादित्य का न्याय तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ था। तथा बेताल के जो भी सवाल थे वो सारे अच्भित करने वाले और न्याय पर आधारित होते थे। इसी कारण हर कोई उनके न्याय को सुनना चाहता था परंतु राजा विक्रमादित्य जैसे ही बेताल के सवाल का जवाब देते। बेताल जवाब सुन कर हवा में उड़कर पेड़ पर चला जाता था, क्योंकि राजा विक्रमादित्य ने अपनी शर्त तोड़कर उसके सवाल का जवाब दे रहे थे।

इसके अलावा राजा विक्रमादित्य को यहां एक और समस्या थी बेताल ने कहा कि कहानी के अंत मे मेरे द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब अगर आप जानते है और यदि जवाब नही दिया तो मैं अपनी शक्ति से आपके सिर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा। विक्रमादित्य विवश थे क्योंकि वे जवाब जानते थे।

अगर राजा विक्रमादित्य चाहते तो अपना ध्यान बेताल की कहानियों से हटा सकते थे। जिसके अनुसार वे कहानी ठीक से नही सुन पाते और उन्हे बेताल के सवालों के जवाब भी नही पता होते और उनकी न बोलने की शर्त भी नही टूटती। लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया। क्योंकि राजा विक्रमादित्य जानते थे की बेताल की बातो में जीवन,राजकाज और गृहस्थी से जुड़ी हुई ज्ञान से परिपूर्ण बातें है। इसलिए वे बेताल की बातो को ध्यान से सुनते थे।

बेताल ने जो भी कहानियां राजा विक्रमादित्य को सुनाई वे सभी कहानियां आदरणीय सोमदेव जी ने लिखी है। इनका पूरा नाम सोमदेव भट्ट था। ये संस्कृति के कवि भी थे। इनका जन्म कश्मीर में हुआ था। यह कहना ठीक नहीं होगा कि बेताल पच्चीसी को सोमदेव जी ने लिखा था। बहुत समय पहले कविवर सोमदेव जी ने अपने काव्य ग्रंथ "कथा सरित सागर" की रचना की जो वास्तव मे एक पौराणिक भाषा में लिखा हुआ काव्य ग्रंथ "वृहत कथा" का ही संस्कृत भाषा में अनुवाद माना जाता है।

"वृहत कथा" के लेखक "गुणाड्या" है जो एक आध्रवंसी राजा सातवाहन के दरबार में मंत्री हुआ करते थे। ग्रंथ 'वृहत कथा' जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।

"इस ग्रंथ को सोमदेव जी ने दो भागों में हिंदी अनुवाद किया था।

'वेताल पंचिविसंती' और 'बेताल पच्चीसी (25 stories of vikram betal)' अथवा 'सिंहासन बतीसी' कथा 'सरित सागर' के ही दो भागो में है।

बहुत ही जल्दी आपको विक्रम बेताल की कहानी भाग 1 (Vikram Betal Story In Hindi) पढ़ने को मिलेगा। हम आपके लिए विक्रम बेताल की कहानी (Vikram Betal Ki Kahani) के सभी भाग लेकर आएंगे। 

आपको आगे पता चलेगा की 

क्या विक्रम बेताल सच्ची कहानी है? | Vikram Betal

बेताल ने जो भी कहानियां राजा विक्रमादित्य को सुनाई थी। वे विक्रम बेताल की कहानियां कौन कौनसी है। 

विक्रम बेताल क्यों गया था | Vikram Betal Ki Kahani

राजा विक्रम बेताल को लाने एक योगी के कहने पर गया था। योगी ने बेताल का पता बताया था की श्मशान घाट के पीपल के पेड़ पर बेताल रहता है। 

बेताल असली है? | Vikram Betal Story In Hindi

विक्रम बेताल की कहानियां ज्ञानवर्धक और सदाचार से परिपूर्ण है। जिनको पढ़ने से हमे जीवन को और भी आसानी से समझ पाते है। 

बेताल की कहानी क्या है? | Vikram Betal Stories In Hindi

आगे आने वाले भाग में हम आपको विक्रम बेताल की कहानियां के सभी भाग सुनाएंगे।जिसमे आपको पता चलेगा की बेताल ने कौन कौनसी ज्ञानवर्धक कहानियां राजा विक्रम को सुनाई थी। 



Vikram Betal Stories In Hindi

विक्रम बेताल की कहानी भाग 1 | विक्रम बेताल की कहानी

बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन राजा का शासन था। राजा गंधर्व सेन की 4 रानियां और 6 लड़के थे। राजा के सभी पुत्र बहुत ही बलवान और चतुर थे। उन्हीं में एक विक्रम भी थे। संयोगवश एक दिन राजा गंधर्वसेन की मृत्यु हो जाती हैं और उनकी जगह राजा का बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठता है और धारा नगरी का संचालन करता है।

बहुत ही राजा शंख बहुत बड़ा अभिलाषी प्रवृत्ति का इंसान था। उसका मन राजकाज में नहीं लगता था राजा संघ की विलासिता के कारण धारा नगरी की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होने लगी और राजकोष घटने लगाा। दुश्मनों के नजरे भी अब धारा नगरी पर पड़ने लगी थी। प्रजा और सभी मंत्रीगण चाहते थे कि गंधर्वसेन राजा के पुत्र विक्रम राजा बने और गंधर्वसेन धारा नगरी का संचालन करें।

विक्रम से भी अपनी प्रजा और धारा नगरी की दुर्दशा देखी नहीं जा रही थी सभी लोग विक्रम के साथ थे। एक दिन विक्रम ने कुछ सिपाहियों की मदद से राजा शंख को मार डाला और खुद राजा बन गया। जिसके बाद धारा नगरी की उन्नति होने लगी और धीरे धीरे वह पूरे जंबू दीप (भारत) का राजा बन गया। 

एक दिन राजा विक्रम के मन में विचार आया कि उसे घूम कर यात्रा करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने है उनको देख कर आना चाहिए। राजा विक्रम ने अपने छोटे भाई भृतहरि को राज्य का संचालन सौंपा और खुद योगी बनकर राज्य भ्रमण के लिए निकल पड़े।

धारा नगरी में एक ब्राह्मण देवता तप करते थे। जिसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे एक फल दिया और कहा कि जो भी इस फल को खाएगा वह अमर हो जाएगा और उसको अमरत्व की प्राप्ति हो जाएगी। 

विक्रम बेताल की कहानियां | विक्रम बेताल की कहानी भाग 1

ब्राह्मण ने अमरफल लाकर अपनी पत्नी को दिया और सारी बात बता दी। ब्राह्मणी बोली कि हम इस अमरफल को खा कर क्या करेंगे, क्या हम भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते है और इस फल को  खाने के बाद हमे पूरी जिंदगी भिक्षा मांग कर ही गुजारनी होगी।

इससे अच्छा मरना ही उचित है और आप इस फल को ले जाकर राजा को दे दो, ताकि राजा लंबी उम्र तक जीवित रहे और राज्य में सुख समृद्धि बनी रहे। राजा इस अमरफल के बदले जो कुछ भी धन दे आप उसको ले आना जिससे हमारा भी जीवन यापन हो जाए।

ब्राह्मण अपनी पत्नी की पूरी बात सुनकर अमरफल लेकर राजा भृतहरि के पास जाता है और सारा हाल बताता है। राजा भृतहरि ने ब्राह्मण से अमरफल लिया और ब्राह्मण को स्वर्ण मुद्राएं देकर विदा कर दिया।

राजा भृतहरि अपनी रानी पिंगला को बहुत ज्यादा प्रेम करता था। राजा वह अमरफल ले जाकर अपनी रानी पिंगला को दे दिया। रानी की मित्रता महल के कोतवाल से थी, रानी भी कोतवाल को मन ही मन बहुत प्रेम करती थी इस वजह से राजा के जाने के बाद रानी ने वह अमरफल कोतवाल को दे दिया। 

कोतवाल नगर की एक वैश्या से प्रेम करता था तो कोतवाल में वह अमरफल ले जाकर उसे वैश्या को दे दिया। वैश्या ने सोचा कि वह इस फल को खाकर अमर होकर क्या करेगी वह इस पापी नर्क सामान जीवन को और ज्यादा नहीं जीना चाहती। 

वह खुद इस अमरफल को खाए इससे अच्छा है कि वह इस अमरफल को राजा को दे आए ताकि राजा लम्बी  जीवित रह सके। यदि राजा जीवित रहेंगे तो प्रजा में सुख समृद्धि बनी रहेगी और सब का भला होगा। 

वैश्या अमरफल को लेकर राजा भृतहरि के पास जाती हैं और उनको दे देती है। राजा भृतहरि अमरफल के बदले उस वेश्या को बहुत धन दिया। जब राजा भरतरी ने उस अमरफल को अच्छी तरह से देखा तो उसको पहचान लिया और उनके मन में सवाल आया की यह अमरफल तो मैंने रानी पिंगला को दिया था। 

राजा भृतहरि सीधा महल में जाता है और अपनी रानी से अमर फल के बारे में पूछता है। तब रानी कहती है कि राजन उसे तो मैंने खा लिया। तभी राजा भृतहरि वह अमरफल निकालकर रानी के सामने रख देता है। डर जाती है और पूरी बात राजा भरतरी को बता देती है।

जब राजा भृतहरि ने पूरी बात का पता लगाया तो राजा को ज्ञात हुआ कि वह सच बोल रही है। जिसके बाद राजा नहीं कोतवाल को बुलाया और कोतवाल ने भी पूरी बात बताई कि उसने यह अमरफल रानी से लेकर नगर की वैश्या को दिया था। 

जिसके बाद राजा भृतहरि बहुत दुखी हो गया और उन्होंने सोचा कि यह दुनिया एक मायाजाल है इसमें कोई भी अपना नहीं है। राजन ने अमरफल लिया और उसे खुद ही खा लिया और बाद में राजपाट छोड़कर योगी का भेष बनाकर जंगल में तपस्या करने चले गया।

राजा भृतहरि के जंगल में जाने के पश्चात धारा नगरी की गद्दी खाली हो गई थी। जब भगवान इंद्र को उसके बारे में पता चला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की सुरक्षा के लिए भेज दिया। वह देव धारा नगरी में ही रहकर राज्य की सुरक्षा करने लगा। जब राजा विक्रम को राजा भृतहरि की बात का मालूम हुआ तो वह वापस अपने देश लौट आए।

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

जब आधी रात आधी रात के समय जब राजा विक्रम धारा नगरी में प्रवेश कर रहे थे। तब भगवान इंद्र के द्वारा भेजे गए देव ने विक्रम को रोका।  

तब राजा विक्रम ने कहा - मैं यहां का राजा विक्रम हूं यह मेरा राज्य है। और तुम मुझे रोकने वाले कौन होते हो।  

देव बोलता है - मुझे भगवान इंद्र ने इस राज्य की सुरक्षा के लिए भेजा है यदि तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो पहले मुझ से लड़ो और यह सिद्ध करो कि तुम ही राजा विक्रम हो।

दोनों में युद्ध होता है और राजा विक्रम थोड़ी ही देर में देव को हरा देते है। तब देव बोलता है कि हे राजन आपने मुझे हरा दिया मैं आपको जीवनदान देता हूं।

उसके बाद देव राजा विक्रम को एक कथा का सुनाता है

एक नगर में एक ही नक्षत्र में आप जैसे तीन आदमी जन्म में थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के घर में और तीसरे ने कुम्हार के घर में जन्म लिया।  

तुम धारा नगरी के राजा बने, तेली पाताल लोक में राजा बना, और तीसरा महान साधु बना। आपसी शत्रुता तथा लोभ के कारण कुम्हार ने योग साधना के अर्जित ज्ञान से तेली को मारकर श्मशान में बनी पीपल के पेड़ में लटका दिया और अब वह आपको मारने का अवसर तलाश रहा है। आप उससे सावधान रहना।

 इतना कहकर भगवान इंद्र द्वारा भेजा गया देव वापस चला जाता है और राजा विक्रम भी अपने महल में आ जाते है। राजा विक्रम को देखकर सभी को बहुत खुशी होती है और पूरे धारा नगरी में आनंद और हर्ष उल्लास का माहौल छा जाता है।

एक दिन शांतिशील नाम का एक योगी राजा विक्रम की दरबार में आता है और राजा विक्रम को एक फल देता है राजा विक्रम को शक होता है कि देव ने जिस इंसान के बारे में राजा विक्रम को बताया था कहीं यह वही व्यक्ति तो नहीं। सोचकर राजा मैंने उस फल को नहीं खाया और उसे भंडारी को दे दिया। 

वह योगी रोजाना राजा के दरबार में आता और राजा को एक फल देकर चला जाता। संयोगवश एक दिन राजा विक्रम अपने अस्तबल को देखने गए, जहां योगी पहुंचा और राजा के हाथ में फल दे दिया राजा विक्रम ने बातों ही बातों में उस फल को उछाला तो वह फल राजा के हाथ से छूटकर धरती पर गिर गया और उसी समय एक बंदर ने झपट्टा मारकर उस फल को उठा लिया और फोड़ दिया।

उस फल में एक लाल रतन निकला जिसकी चमक से सभी की आंखें चौंधियाँ जाए। राजा विक्रम को बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ और राजा ने योगी से पूछा कि आप यह लाल रतन मुझे क्यों देकर जाते है।

योगी ने कहा - हे राजन राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी इनके घर कभी भी रिक्त हाथ नहीं जाना चाहिए।

राजा ने भंडारी को बुलाया और सभी फल मंगवा कर उनको काटने को कहा। फल काटने के बाद सभी में से लाल रत्न निकले, इतना रत्न लाल रत्न देकर राजा को बहुत खुशी हुई और जोहरी को बुलवाकर लाल रत्नों का मूल्य पूछा।

जोहरी ने कहा कि राजन इन लाल रत्नों का मूल्य इतना है कि इनको करोड़ों रुपए में भी नहीं बताया जा सकता। एक-एक लाल रत्न एक-एक राज्य के समान है। राजा योगी को अकेले में लेकर जाते है और फल देने का प्रयोजन जानना चाहते है। 

तब योगी बोलता है कि महाराज मैं अपनी कामना पूरी करने के लिए नदी के किनारे शमशान में एक मंत्र साधना कर रहा हूं। और उसके सिद्ध हो जाने पर मेरी कामना पूरी हो जाएगी। राजन यदि आप एक रात्रि मेरे पास रहो तो मेरी मंत्र साधना सिद्ध हो जाएगी। एक रात्रि आप अपने हथियार बांधकर अकेले मेरे पास आ जाना।

राजा विक्रम कहते है - अच्छी बात है योगी महाराज। यदि मेरी उपस्थिति से आपकी मंत्र साधना और आपकी कामना पूरी होती है तो मैं जरूर आऊंगा। इसके पश्चात योगी कुछ दिन राज्य में बिताकर अपने मठ में चला जाता।

जब वह दिन आता है तो राजा विक्रम अकेले योगी महाराज के पास जाते है। और योगी उनको अपने पास बैठा लेता है। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम पूछते है महाराज मेरे लिए क्या आज्ञा है। तब योगी कहता है राजन यहां से दक्षिण दिशा में दो कोस दूर शमशान में एक मुर्दा लटका पड़ा है। आप उसको यहां लेकर यहां आओ।

तब तक मैं पूजा की विधि पूर्ण करता हु। योगी की बात सुनकर राजा विक्रम मसान की तरफ निकल पड़ते है। रात बहुत अंधेरी थी, चारों तरफ अंधकार फैला था, भूत प्रेत शोर कर रहे थे, आसमान से पानी बरस रहा था, साँप आकर पैरों में गिर रहे थे लेकिन हिम्मतवान राजा विक्रम आगे बढ़ते गए। 

जब राजा मसान में पहुंचा तो भूत प्रेत आदमियों को मार रहे थे, शेर दहाड़ रहे थे, हाथी झिंगाट रहे थे लेकिन राजा विक्रमादित्य बेधड़क होकर आगे चलते गए। जब राजा पीपल के पेड़ पेड़ के पास पहुंचे तो देखा पेड़ की जड़ से लेकर पेड़ की शीर्ष तक आग धधक रही है। राजा सोचता है कि यह वही पीपल का पेड़ है जिसके बारे में योगी ने मुझे बताया था। 

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी

तभी राजा को देव की बात याद आती है जिसने बताया था कि योगी किस प्रकार से राजा की जान लेने का अवसर ढूंढ रहा है।

राजा पीपल के पेड़ पर चढ़ता है और तलवार से रस्सी काट कर मुर्दे को नीचे गिरा देता है। तभी मुर्दा जोर-जोर से रोने लगता है। राजा विक्रम नीचे आकर पूछते है - तुम कौन हो? 

तभी मुर्दा खिलखिला कर हंसता है। राजा विक्रम को बहुत आश्चर्य होता है। तभी मुर्दा वापस से पीपल के पेड़ पर जाकर लटक जाता है। 

राजा विक्रम दुबारा पेड़ पर चढ़ते है और रस्सी काटते ही मुर्दे को अपने बगल में दबा लेते है और नीचे आते है। 

राजा विक्रम बोलते है - बताओ तुम कौन हो मुर्दा चुप रहता है ? 

मुर्दा कुछ नहीं बोलता, तब राजा विक्रम में मुर्दे को एक चादर में बांधा और योगी के पास ले जाने के लिए निकल पड़ते है।

रास्ते में मुर्दा बोला - मैं बेताल हूं, और तुम कौन हो? कहां लेकर जा रहे हो मुझे?

राजा विक्रम बोलते है - मेरा नाम विक्रम है। मैं धारा नगरी का राजा हूं और एक सन्यासी योगी के कहने पर मैं तुमको उसके पास लेकर जा रहा हूं। 

तब बेताल बोला - मैं एक शर्त पर तुम्हारे साथ चलूंगा, यदि तुम रास्ते में बोलोगे तो मैं वापस से पीपल के पेड़ पर जाकर लटक जाऊंगा।

तब राजा विक्रम बेताल की बात मान लेते है फिर बेताल बोलता है - पंडित, चतुर और ज्ञानी के दिन अच्छी-अच्छी बातों में गुजरते है लेकिन मूर्खों के दिन झगड़े और नींद में गुजरते है। अच्छा है कि हमारा रास्ता अच्छी भली बातों की चर्चा में गुजर जाए। 

बेताल बोला - राजन मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं लेकिन तुम कुछ भी नहीं बोलोगे और ना ही कोई सवाल जवाब करोगे।

इसके पश्चात बेताल राजा विक्रम को कहानी सुनाना प्रारंभ करता है।






विक्रम बेताल की कहानी भाग 2 | विक्रम बेताल की कहानी

काशी नगरी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज करता था। जिसके वज्रमुकुट नामक एक पुत्र था। एक रोज वज्रमुकुट दीवान के बेटे के साथ जंगल में शिकार खेलने गया।

जंगल में घूमते घूमते उनको एक तालाब मिला जहां कमल के फूल खिल रहे थे, हंस हठी ठिठोली कर रहे थे। तालाब के किनारों पर घने पेड़ थे जिन पर पक्षी चहक रहे थे।

वज्रमुकुट और उसका मित्र (दीवान का लड़का) दोनों तालाब के नजदीक रुके और तालाब में हाथ मुंह धो कर निकल गए।

थोड़ी दूर जाने पर उनको एक भगवान शिव का मंदिर दिखाई दिया। दोनों ने घोड़े को मंदिर के बाहर बांधकर मंदिर में दर्शन के लिए चले गए।

जब वे दोनों मंदिर दर्शन करके बाहर आए तो उन्होंने देखा कि राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ तालाब में स्नान करने के लिए आई है। दीवान का लड़का वही पेड़ के नीचे बैठ गया, लेकिन राजकुमार उस राजकुमारी की तरफ आकर्षित हो गया और आगे बढ़ने लगा। राजकुमार पूरी तरह राजकुमारी पर मोहित हो गया था जब राजकुमारी कि नजरें राजकुमार से मिली तो राजकुमारी भी देखती ही रह गई।

तब राजकुमारी ने जुड़े में से कमल का फूल निकालकर, उसको कान में सजाया और फिर दांतों से कुतरकर पैरों के नीचे दबाया और फिर छाती से लगाकर, अपनी सहेलियों के साथ चली गई।
राजकुमारी के जाने के बाद राजकुमार निराश हो गए और दीवान के लड़के के पास आकर उसको सारी बात बताई कहा - मैं राजकुमारी के बिना एक पल भी नहीं रह सकता लेकिन मुझे ना तो उसका पता मालूम है ना ही यह पता कि मैं कैसे मेरी होंगी। 

दीवान का लड़का बोला राजकुमार आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। राजकुमारी आपको सब कुछ बता कर गई है। राजकुमार ने पूछा कैसे? तब दीवान का लड़का बोला उसने राजकुमारी ने पहले कमल का फूल फिर से उतारकर कानों पर लगाया, तब बताया कि राजकुमारी कर्नाटक की रहने वाली है। उसके बाद दांतो से कुतरा मतलब की दंतावट राजा की बेटी है और फूल को पैर से दबाने का मतलब की राजकुमारी का नाम पद्मावती है और अंत में उन्होंने फूल को उठाकर सीने से लगाया जिसका मतलब है कि राजकुमार आप उनके दिल में बस गए हो।

विक्रम बेताल की कहानियां | विक्रम बेताल की कहानी भाग 2 | vikram betal ki kahani

इतना सब सुनने के बाद राजकुमार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। राजकुमार उठ खड़े होकर बोले चलो अब मुझे कर्नाटक देश जाना है। दोनों मित्र वहां से कर्नाटक देश की तरफ चल निकले। सैर करते हुए कई दिनों के बाद दोनों कर्नाटक देश पहुंचे, राजा के महल के पास गए।

उनको महल के पास एक वृद्ध महिला चरखा काटती मिली। दोनों मित्र महिला के पास जाकर बोले माई हम सौदागर हैं और हमारा सामान पीछे आ रहा है हमें रहने के लिए थोड़ी सी जगह चाहिए। 

वृद्ध महिला की राजकुमार और दोनों मित्रों की शक्ल सूरत देखकर ममता पिघल गई और बोली - बेटा तुम्हारा ही घर है जब तक मन करे रहो।

दोनों मित्र माई के घर में रहने लगे। दीवान का लड़का, माई से बोला - माई आप क्या करती हो? आपके घर में कौन-कौन है और आप कैसे गुजारा करते हो?

बूढ़ी माई ने बोला - मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में है और मैं राजा की बेटी पद्मावती की धाय मां हूं और अब बूढी हो जाने के कारण घर में रहती हूं, राजा मुझे खाने-पीने खो देता है। दिन में एक बार में राजकुमारी को देखने महल में जाती हूं।

राजकुमार माई  को कुछ धन देता है और कहता है माई कल जब आप वहां जाओ तो राजकुमारी को कहना - जेठ सुदी पंचमी को तालाब पर मिला राजकुमार आ गया है।

माई राजमहल गई तो उन्होंने राजकुमार का संदेश राजकुमारी को सुना दिया। राजकुमारी ने संदेश सुनते ही गुस्सा होकर हाथों में चंदन लगा, उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा मेरे घर से निकल जाओ।

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी

बुढ़िया माई ने घर आकर सारी बात राजकुमार को बताइए। बात सुनकर राजकुमार हक्के बक्के रह गए। तब राजकुमार का मित्र बोला - राजकुमार आप चिंता मत करिए मैं उनकी बातों को समझ गया।

उन्होंने दसों उंगलियों चंदन में डुबोकर मारी है इसका मतलब है कि अभी 10 रोज चांदनी के है जिनके बीतने पर मैं अंधेरी रात में मिलूंगी।

दस दिन बाद राजकुमारी को दोबारा राजकुमार का संदेश सुनाया जाता है तो इस बार राजकुमारी ने केसर के रंग में तीन उंगलियां को डुबोकर उसके मुंह पर मारी और कहां भाग जाओ यहां से।

बुढ़िया माई ने आकर राजकुमार को पूरी बात सुनाई और इस बार राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। दीवान के लड़के ने कहा - राजकुमार हैरान होने की कोई बात नहीं है राजकुमारी ने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है और 3 दिन और रुको। 

 3 दिन बीतने के बाद बुढ़िया माई राजकुमारी के पास जाती है और राजकुमार का संदेश सुनाती है तो राजकुमारी बुढ़िया माई को पश्चिम की खिड़की से बाहर निकाल देती है।

बुढ़िया माई राजकुमार को सारा हाल बताती है। जिसको सुनकर दीवान का मित्र बोला मित्र राजकुमारी ने आज रात को तुम्हें उस खिड़की से बुलाया है। राजकुमार की तो खुशी के मारे कोई ठिकाना ही नहीं रहा। 

समय आने पर राजकुमार ने बुढ़िया माई की पोशाक पहनी और हथियार बाँध, रात के दो पहर बीत जाने के बाद महल पहुंचा और उसी खिड़की से होकर अंदर चला गया। राजकुमारी वहां पहले से ही तैयार खड़ी थी, राजकुमार को लेकर अंदर गई। 

अंदर का हाल देखकर राजकुमार की आंखें खुल गई एक से बढ़कर एक चीजें थी। रात भर राजकुमार राजकुमारी साथ रहे। जैसे यह दिन निकला तो राजकुमारी ने राजकुमार को छुपा दिया और रात होने पर निकाल लिया। कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। 

अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आई और उसे चिंता सताने लगी कि उसका क्या हुआ। राजकुमार को उदास देख राजकुमारी ने उदासी का कारण पूछा तो राजकुमार ने सब बताया और बोलो - मेरा मित्र बहुत होशियार और चतुर है। उसी की चतुराई से तुम मुझको मिल पाई हो।

राजकुमारी बोली - मैं उसके लिए बहुत स्वादिष्ट-स्वादिष्ट भोजन बनाती हूं। तुम उसको भोजन खिलाकर तसल्ली देकर वापस लौट आना। 

राजकुमार खाना लेकर अपने मित्र के पास पहुंचा और राजकुमार महीने भर से नहीं मिले थे राजकुमार ने मिलने का सारा वृतांत मित्रों को सुनाया और कहा - राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सभी बातें बता दी है। तब राजकुमारी ने भोजन बनाकर भेजा है। 

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी | vikram betal story

तब दीवान का लड़का सोचने लग गया और बोला - मित्र तुमने यह अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गई है कि जब तक मैं हूं वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती, इसलिए राजकुमारी ने इस खाने में जहर मिला कर भेजा है।

इतना कहकर दीवान का लड़के ने भोजन की थाली एक लड्डू उठाया और एक कुत्ते उनको खाने को दे दिया। जैसे ही कुत्ते ने लड्डू खाया, कुत्ते की मौत हो गई। 

राजकुमार को बहुत बुरा लगा और राजकुमार ने कहा - ऐसी स्त्री से भगवान ही बचाए। अब मैं दोबारा उस राजकुमारी के पास नहीं जाऊंगा। तब दीवान का बेटा बोला - नहीं, अब ऐसा उपाय करना है कि जिससे हम उसे घर लेकर चले।

आज रात को मित्र आज आपको तुम वहां आ जाओ और जब राजकुमारी सो जाए तो उसकी बाई जांघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसकी गहने लेकर आ जाना। 

राजकुमार ने ठीक वैसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा राजकुमार को साथ ले और खुद योगी का भेष बना मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा - यह गहने लेकर तुम बाजार में बेच आओ और यदि कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उनको यहां ले आना।

राजकुमार नहीं ठीक वैसा ही किया। राजकुमार गहने लेकर शहर में गया और जाकर एक सुनार को दिखाया। 

गहने देखते ही सुनार  ने उसको पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो राजकुमार ने कहा कि यह मेरे गुरु ने मुझे दिया है। तब कोतवाल गुरु को पकड़ लिया और सब राजा के समक्ष पहुंचे।

राजा ने पूछा - योगी महाराज जी यह गहने आपको कहां से मिले। 

तब योगी बने दीवान के बेटे ने कहा - महाराज मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी मंत्र सिद्ध कर रहा था, तब डाकिनी आई थी और मैंने उसके गहने उतार लिए और बाई जांघ पर त्रिशूल का निशान बना दिया 

इतना सुनकर राजा महल में जाता है और रानी से कहता है की पद्मिनी की बायीं जांघ पर देखो, कोई त्रिशूल का निशान तो नहीं है ना। 

जब रानी ने देखा तो सच में त्रिशूल का निशान था। यह जानकार राजा को बहुत दुःख होता है। राजा बाहर आकर योगी से पूछता है - योगी महाराज शास्त्रों में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दंड है ?

योगी बोला - राजन, ब्राहमण, गौ, स्त्री, लड़का और सानिध्य में रहने वाले शान से कोई खोट हो जाए तो उसको देश निकालें निकाला देना चाहिए।  

यह सुनकर राजा राजकुमारी पद्मिनी को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा देता है। राजकुमार और दीवान का बेटा तो पहले से ही राजकुमारी की ताक में बैठे थे। राजकुमारी को अकेला पाकर अकेली पाकर राजकुमार अपने साथ नगर में ले आता है और दोनों आनंद से रहने लगते है।

इतनी बात सुनाकर बेताल बोला - राजन अब बताओ आप किसको लगा?

राजा विक्रम बोले - पाप तो राजा को लगा क्योंकि दीवान की बेटे ने अपने स्वामी का काम किया, कोतवाल ने राजा का कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। राजा ने पाप किया जो बिना सोच-विचार किए राजकुमारी को देश निकाला दे दिया।

विक्रम का इतना कहना था कि बेताल फिर से उसी पीपल के पेड़ पर जाकर लटक गया। राजा वापस गए और बेताल को वापस पेड़ से नीचे उतार लेकर चल दिए।

बेताल बोला - राजन तुम बहुत बड़े हटी मालूम होते हो, लेकिन कोई बात नहीं। देखता हूं तुम कितने हटी और कितने धैर्यवान हो।

बेताल पच्चीसी की सभी कहानियां आपको यहां पढ़ने को मिलेगी। हम विक्रम बेताल की कहानियां का पूरा संग्रह लेकर आ रहे है। 






आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 3

विक्रम बेताल की कहानी भाग 3

विक्रम बेताल की कहानी भाग 3 | विक्रम बेताल की कहानी

यमुना नदी के तट पर धर्मस्थान नामक नगरी थी। जहाँ गणाधिप राजा शासन करता था। धर्मस्थान नगर में केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण रोजाना यमुना किनारे तप करने जाता था। ब्राह्मण के मालती नाम की बहुत ही रूपवान पुत्री थी। 

जब मालती की उम्र शादी योग्य हो गयी तो माता-पिता और भाई को उसके ब्याह की चिंता सताने लगी। एक दिन ब्राह्मण अपने किसी यजमान के यहाँ बारात में गया हुआ था और मालती का भाई पढ़ने गया हुआ था। 

उसी दिन सयोंगवश उनके घर एक ब्राह्मण का लड़का आता है। मालती की माँ ने लड़के के गुणों और रूप को देखकर उसे वचन देती है - मैं तुम्हारा ब्याह अपनी बेटी मालती से करुँगी। 

दूसरी तरफ मालती के पिता को भी एक ब्राह्मण का लड़का मिला और जिसे ब्राह्मण ने वचन दिया - की वह अपनी बेटी मालती का ब्याह उसी से करेगा। 

उधर मालती का भाई पढ़ने गया था ,जहाँ उसे भी ब्राह्मण लड़का मिलता है तो वह भी उसको वचन दे देता है - मेरी बहन मालती का ब्याह तुमसे ही करूँगा। 

कुछ समय पश्चात जब ब्राह्मण घर आया तो देखा की वहाँ एक ब्राह्मण का लड़का पहले से है। थोड़ी देर बाद मालती का भाई भी एक ब्राह्मण लड़के को लेकर आया। थोड़ी ही देर में मालती के माता-पिता और भाई को सब समझ आ गया। 

तीनो सोचने लग गए की अब क्या करे ? किस ब्राह्मण पुत्र से मालती का ब्याह करे ?

तभी मालती को सर्प काट लेता है। मालती के माता-पिता और भाई सहित तीनो ब्राह्मण युवकों ने वैध को बुलाया और जहर झाड़ने वाले को बुलाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सब अपना अपना उपचार करके चले गए। लेकिन मालती की मौत हो जाती है। 

विक्रम बेताल की कहानियां | विक्रम बेताल की कहानी भाग 3

दुःख से विलाप करते हुए सभी मालती को श्मशान लेकर गये और उसका दाह-संस्कार कर वापस लौट आये। 

तीनो लड़को में से पहले लड़के ने मालती की हड्डिया समेट ली और फ़क़ीर बनकर जंगल में चला गया। 

दूसरे लड़के ने मालती की के शरीर की राख को गठरी बाँध, वही झोपड़ी बनाकर बस गया। 

तीसरा लड़का योगी (साधू, सन्यासी) बनकर नगर -नगर घूमने लगा। 

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

एक बार वह तीसरा लड़का घूमते-घूमते किसी नगर में जा पहुँचा। जहां वह एक ब्राह्मण के घर गया। उस ब्राह्मण के एक लड़का था जो उस नगर के राजा के यहाँ सैनिक था। जब ब्राह्मण भोजन पर बैठा तो कुछ सैनिक उस ब्राह्मण के बेटे का शव लेकर आते है। वे सैनिक उस घटना के बारे में बताते है जिसके कराण उसके लड़के की मौत हुई थी। 

बेटे का शव देखकर ब्राह्मण की पत्नी दुख से विलाप करने लगी, जिसे देखकर योगी ने भी अपना  भोजन बीच में छोड़ खड़ा हो गया। ब्राह्मणी का रोना उसके पति से देखा नहीं गया। उसके पास पूर्वजो की दी हुई संजीवनी विद्या की पोथी थी। ब्राह्मण ने जैसे ही संजीवनी विद्या का मन्त्र पढ़ा तो उसका मरा हुआ लड़का जीवित हो उठा। 

यहाँ देखकर वह योगी आश्चर्यचकित हो गया। योगी ने सोचा की अगर वह संजीवनी विद्या की पोथी मेरे हाथ आ जाए तो मैं मालती को फिर से जीवित कर लूंगा। इसके बाद उस योगी ने खाना खाया और  ब्राह्मण के घर ही रुक गया। रात को जब सभी भोजन करके सो गये तो योगी चुपचाप धीरे से उस पोथी को लेकर चल पड़ा। 

अब योगी उसी स्थान पर जा पहुँचा जहाँ मालती का दाह-संस्कार गया था। वह जाकर देखता है - दोनों लड़के वह बैठे बाते कर रहे थे। योगी ने दोनों को संजीवनी विद्या की पोथी के बारे में बताया। दोनों ने अपने पास रखी मालती की हड्डिया और राख निकाली। जैसे ही योगी ने मन्त्र पढ़ा मालती जीवित हो उठी। अब फिर से वे तीनो मालती के लिए झगड़ने लगे।

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - "हे राजन, अब बताओ की वह लड़की किसकी पत्नी बननी चाहिए?"

राजा विक्रम ने जवाब दिया - "जो लड़का वह झोपड़ी बनाकर रह रहा था (जो मालती के शरीर की राख को रखे हुए था) उसकी।

बेताल - "उसकी क्यों?" 

तब राजा विक्रम - "जिसने हड्डिया रखी,वह उसके बेटे के समान हुआ। जिसने संजीविनी विद्या से जीवन दान दिया,वो बाप के समान हुआ और जो राख लेकर रमा रहा,वही उसका हक़दार हुआ। 

राजा विक्रम का उत्तर सुनकर बेताल कहता है - "राजन तुमने अच्छा गणित लगाया पर अपनी शर्त भूल गये" और इतना कहकर बेताल फिर उसी पीपल के पेड़ पर जा बैठा। राजा विक्रम फिर लोटे और बेताल को लेकर फिर से चल पड़े। 






आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 4

विक्रम बेताल की कहानी भाग 4

सबसे ज्यादा पुण्य मिलेगा | विक्रम बेताल की कहानी भाग 4 | विक्रम बेताल की कहानी

वर्धमान नाम का एक नगर था। जहाँ का राजा रूपसेन था। रूपसेन बहुत ही दयालु और न्यायप्रिय राजा था। एक बार रूपसेन के यहाँ एक वीरवार नाम का राजपूत नौकरी के लिए आया। 

रूपसेन ने वीरवर से पूछा - खर्च के लिए क्या चाहिए? तो उसने उत्तर दिया की "मुझे हजार तोला सोना चाहिए।"

दरबार में बैठे सभी लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ। रूपसेन ने वीरवार से पूछा - "तुम कितने लोगो हो।" 

वीरवर बोला - "मै, मेरी पत्नी,मेरा बेटा और बेटी।" 

राजा को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर चार लोग इतने धन का क्या करेंगे? तब रूपसेन ने सोचा की कोई न कोई कारण तो अवश्य है। फिर उसने वीरवर की बात मान ली।

उसी दिन से वीरवर भंडारी के पास जाकर एक हजार तोला सोना लेकर अपने घर आता। एक हजार तोले सोने में से वीरवर आधा सोना ब्राह्मणो में बांटता और बचे आधे तोले सोने के दो बराबर हिस्से कर मेहमानो, वैरागियों और सन्यासियों में बाटं देता। 

वह दुसरो से भोजन बनवाकर पहले गरीबो को देता और फिर जो बचता उसे अपनी स्त्री और अपने बच्चो को खिलता और स्वयं  खाता। उसका कार्य था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर राजा के पलंग की चोकीदारी करनी थी। कभी भी राजा को किसी भी वस्तु की जरूरत होती तो वह हाजिर रहता था। 

विक्रम बेताल की कहानियां | विक्रम बेताल की कहानी भाग 4

एक बार आधी रात के समय राजा को किसी के रोने की आवाज आने लगी। वह आवाज मरघट की तरफ से आ रही थी। राजा ने वीरवर को आवाज लगयी तो वह राजा के समक्ष उपस्थित हो गया। 

राजा रूपसेन ने वीरवर को कहा - "मुझे मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज आ रही है। जाओ और पता लगाओ की इतनी रात गये कौन रो है? और क्यों रो रहा है" 

राजा का आदेश सुनकर वीरवर तत्काल मरघट की तरफ चल देता है। मरघट पर जाकर देखा – सिर से पांव तक गहने पहने एक स्त्री नृत्य कर रही है, कभी कूद रही है, कभी सिर पीट पीट कर रो रही है। लेकिन उसकी आंखों में एक भी आंसू की बूंद नहीं है। 

वीरवर ने पूछा – तुम कौन हो और रोती क्यों हो? 

उसने कहा – मैं राजलक्ष्मी हूं मैं इसलिए रोती हूं क्योंकि राजा रूपसेन के घर में खोटे काम होने लग गए है और अब वहां जल्दी ही दरिद्रता का डेरा पड़ने वाला है। मैं वहां से चली जाऊंगी और राजा दुखी होकर एक माह में मर जाएगा। 

यह सुनकर बीरबल ने पूछा – इस दुविधा से बचने का कोई उपाय है? 

स्त्री बोली – हां, यहां से पूर्व दिशा में एक देवी का मंदिर है यदि तुम वहां जाकर अपने बेटे का शीश चढ़ा दो तो राजा पर आने वाली सारी पता चल जाएंगी और राजा रूप से 100 सालों तक बेखटके राज करेगा। 

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

वीरवर स्त्री की बात सुनकर घर आता है और अपनी पत्नी को जगा कर सारा हाल बताता है। तभी पत्नी ने बेटे को जगाया, बेटी भी जगी हुई थी। 

जब बालक ने पिता वीरवर की बात सुनी तो वह खुश होकर बोला – पिताजी आप मेरा शीश काटकर देवी के मंदिर चढ़ा दे। इससे एक तो आपकी आज्ञा पूरी होगी, दूसरा स्वामी का कार्य और तीसरा मैं देवी के चरणों में रहूंगा। इस से बढ़कर बात क्या होगी। आप शीघ्रता करें

वीरवर अपनी पत्नी को कहता है – अब तुम बताओ? 

पत्नी ने कहा – पत्नी का धर्म पति की सेवा करने में है।

इसके बाद चारों देवी के मंदिर जाते है। जहां वीरवार हाथ जोड़ कर कहता है – हे देवी, मैं अपने पुत्र की बलि दे रहा हूं आप मेरे राजा रूपसेन की उम्र 100 बरस करें और उनके राज्य पर आने वाली हर विपदा को दूर करें। 

इतना कहकर वीरवार ने जोर से तलवार चलाई जिससे पुत्र का शीश काटकर अलग हो गया। जिसके बाद बीरबल की पुत्री ने अपने भाई की मृत्यु देखी तो खुद भी तलवार से अपना शीश काटकर खत्म हो गई। 

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी

बेटा बेटी के मर जाने के बाद वीरवर की पत्नी भी दुखी हो गई और उन्होंने भी अपनी गर्दन काट ली। इसके पश्चात वीरवर ने सोचा – जब मेरा पूरा परिवार ही खत्म हो गया तो मैं जीवित रहेगा क्या करूंगा और उसने भी अपना सिर काट लिया। 

जब राजा को यह पता चला तो राजा रूपसेन बहुत दुखी हुआ। राजा ने सोचा – अकेले राजा के प्राणों की रक्षा करने के लिए 4 प्राणियों ने अपनी जान दे दी। 

राजा स्वयं को धिक्कारने लगा और राजा ने भी तलवार उठा कर जैसे ही अपनी गर्दन काटने लगा, तभी देवी प्रकट होकर बोली – मैं तेरे से बहुत प्रसन्न हूं जो तू वर मांगेगा मैं दे दूंगी। 

राजा – देवी यदि आप इतनी प्रसन्न हो तो उन चारों प्राणियों को जीवित कर दो। 

देवी ने अमृत छिड़का और चारों प्राणी फिर से जीवित हो गया। 

इतना कहकर बेताल राजा विक्रम से पूछता है – बताओ राजन सबसे ज्यादा पुण्य मिला? 

राजा विक्रम बोले – "राजा को सबसे ज्यादा पुण्य मिलेगा" 

बेताल ने पूछा – क्यों? 

राजा विक्रम बोले – राजा को सबसे ज्यादा पुण्य इसलिए क्योंकि स्वामी के लिए नौकर का प्राण देना धर्म है लेकिन नौकर के लिए राजा राजपाट छोड़ दें और अपनी जान देने को तैयार हो जाए तो यह बहुत बड़ी बात है। 

इतना सुनकर बेताल गायब हो गया और वापस पीपल के पेड़ पर जाकर लटक गया। राजा विक्रम फिर से दौड़ कर जाते है और बेताल को पकड़कर चल देते है।






आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 4

सबसे बड़ा पापी कौन | विक्रम बेताल की कहानी भाग 5

सबसे बड़ा पापी कौन | विक्रम बेताल की कहानी भाग 4 | Vikram Betal Story

भोगवती नगरी में रूपसेन राजा राज करता था। राजा के पास चिंतामणि नाम का एक तोता था। 

राजा ने तोते से पूछा - बताओ हमारा ब्याह किसके साथ होगा? 

तोता बोला - महाराज आप ब्याह मगध देश की राजकुमारी चंद्रावती के साथ होगा। 

राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो ज्योतिषी ने भी यही कहा। 

उधर मगध देश की राजकुमारी चंद्रावती के पास भी एक मैना थी। जिसका नाम मदन मंजरी था।

राजकुमारी ने मंजरी से पूछा - मेरा ब्याह किसके साथ होगा? 

तो मैना बोली - भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ आपका ब्याह होगा। 

इसके बाद दोनों का ब्याह हो जाता है और राजकुमारी के साथ मैना भी भोगवती नगर आ जाती है। 

राजा-रानी ने तोता-मैना का विवाह करके उन्हें एक पिंजरे में छोड़ दिया। 

एक दिन तोता-मैना में बहस हो गई। 

मैना ने कहा - आदमी पापी दगाबाज और अधर्मी होता है। 

तोता बोला - स्त्री झूठी हत्यारी लालची होती है।

दोनों का झगड़ा बढ़ गया और बात राजा तक पहुंची। 

राजा - क्या बात हो गई जो तुम दोनों आपस में लड़ रहे हो। 

मैना ने कहा - महाराज आदमी बहुत बुरे होते है।

इसके बाद मैना ने राजा कोई कहानी सुनाई। 

इलापुर नगर में महाधन नामक सेठ रहता था। महाधन के ब्याह के कई सालों बाद उसके घर एक लड़के का जन्म हुआ। सेठ ने बहुत ही अच्छे तरीके से अपने बेटे का लालन-पालन किया, लेकिन लड़का बड़ा होकर जुआरी बन गया और जुआ खेलने लग गया। 

इस दरमियान सेठ की मृत्यु हो गई और लड़का अपना सारा धन जुए में हार गया। जब कुछ भी पास में नहीं बचा तो लड़का वह नगर छोड़कर चंद्रपुरी नगरी में चला गया। 

विक्रम बेताल की कहानी भाग 4 | विक्रम बेताल की कहानियां

जहां हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था। हेम गुप्त के पास जाकर सेठ के लड़के ने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज लेकर सौदागिरी करने गया था वहां माल बेचा और बहुत धन कमाया लेकिन वापस लौटते समय समुद्र में तूफान आया जिससे पूरा का पूरा जहाज डूब गया। मैं जैसे तैसे अपनी जान बचाकर यहां तक आया हूं। 

हेमगुप्त साहूकार के रत्नावती नाम की लड़की थी। साहूकार को बहुत अच्छी बहुत खुशी हुई कि उसको घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया था। 

साहूकार ने अपनी बेटी रत्नवती का ब्याह सेठ के लड़के से कर दिया। दोनो वहीं रहने लगे। कुछ दिनों बाद दोनों वहां से विदा होकर जाने लगे तो साहूकार ने बहुत सारा धन दिया और साथ में दासी को भी भेजा। 

रास्ते में बहुत बड़ा जंगल पड़ता था। वहां पहुंचकर लड़के ने अपनी पत्नी से कहा - इस जंगल में बहुत डर है, तुम अपने गहने उतार कर मेरी कमर से बांध दो। 

रत्नवती ने भी वैसा ही किया। इसके बाद लड़के ने कहारो को धन देकर संपूर्ण डोले को वापस करा दिया। दासी को मारकर कुएं में फेंक दिया और फिर अपनी पत्नी को भी कुएं में पटक कर आगे निकल गया। 

स्त्री कुएं में बैठी रोने लगी। तभी उधर से जा रहे मुसफिर को जंगल में किसी के रोने की आवाज सुनी। वह कुएं के नजदीक आया और उस स्त्री को कुएं से निकालकर उसके घर उसके पिता हेमगुप्त के पास पहुंचा दिया।

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

स्त्री ने घर जाकर अपने मां बाप से बताया कि रास्ते में चोरों ने हमारे सारे गहने छीन लिए, दासी को मार दिया और मुझे कुएं में गिरा कर भाग गए। 

साहूकार ने बेटी रत्नावती को ढांढस बंधाया और कहा कि तुम चिंता मत करो, दामाद जी जीवित होंगे और वह एक ना एक दिन जरूर वापस आएंगे। 

उधर लड़का अपनी पत्नी के गहने जेवर लेकर शहर पहुंचा और उसको पहले से जुए की लत लगी हुई थी और वह सारे गहने वापस से जुए में हार गया। 

कुछ दिनों में उसकी हालत बहुत बुरी हो गई तो वह वापस अपने ससुराल चला गया। जहां सबसे पहले उसको उसकी पत्नी रत्नावती मिली जो बहुत खुश हुई। उसने पति से कहा कि आप चिंता मत करो, मैंने यहां आकर दूसरी बात बताई थी और जो भी बात उसने अपने पिता से हेम गुप्त को बताई थी वह सारी बातें अपने पति को बता दि।

साहूकार अपने जमाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अपने जमाई की बहुत खातिरदारी की और जमाई घर में रखने लग गया। 

कुछ दिनों के पश्चात जब रत्नावती गहने पहन कर सो रही थी तब उसके पति ने चुपचाप से उसको छोरी से मार दिया और उसके गहने लेकर भाग गया।

मैना बोली - महाराज यह सब मैंने अपनी इन आंखों से देखा था कि आदमी कितना निर्दई और पापी होता है। 

राजा ने तोते से कहा - तोते तुम बताओ कि स्त्री बुरी लालची क्यों होती है? 

इसके पश्चात तोते ने राजा को एक कहानी सुनाई।

कंचनपुर में सागरदत्त नामक सेठ रहता था। जिसके श्रीदत्त नाम का एक लड़का था और कंचनपुर से कुछ दूर विजय श्री विजय पुर नामक नगर था। जहां सोमदत्त नाम का सेठ रहता था। जिसके जयश्री नामक लड़की थी। 

जिसकी शादी श्रीदत्त से हुई थी। शादी के बाद श्रीदत्त व्यापार करने के लिए प्रदेश चला गया। उसको करीब 12 बरस हो गए। इधर जयश्री, श्रीदत्त के इंतजार में व्याकुल होने लगी। 

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी

एक दिन जयश्री अटारी पर खड़ी थी तभी उसे एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। उस आदमी को देखकर जयश्री उस पर मोहित हो गई। जयश्री ने उस आदमी को अपनी सखी के घर बुलवा लिया। 

रात होते ही जयश्री सखी के घर चली जाती और रात भर वहां रहकर, दिन होने से पहले वापस अपने घर लौट आते। इस तरह कई दिन बीत गए। 

इसी बीच एक दिन श्रीदत्त प्रदेश से वापस लौट आता है। जयश्री बहुत दुखी हुई कि अब वह क्या करें? श्रीदत्त थका हारा था तो जल्दी ही उसकी आंख लग गई।

और स्त्री जयश्री उठ कर अपने सखी के पास चली गई। रास्ते में एक चोर खड़ा था जो यह देखने लगा कि यह स्त्री कहां जा रही है। जय श्री धीरे-धीरे अपनी सखी के घर पहुंची तभी चोर भी उसके पीछे-पीछे चला गया। 

संयोग से उस आदमी को सांप ने काट लिया था और वह मृत पड़ा था। जयश्री ने सोचा कि यह सो रहा है। वही आंगन में पीपल का एक पेड़ था जिस पर एक पिशाच बैठा यह सब होता देख रहा था। 

पिशाच उस आदमी के शरीर में प्रवेश कर, अपनी सारी बिपाशा मिठाई और उत्तेजित होकर उसने जयश्री का नाक काट लिया। फिर उस आदमी की देह से निकलकर वापस पेड़ पर जाकर बैठ गया। 

जयश्री रोती हुई अपनी सखी के पास आई। सखी ने कहा - तुम अपने पति के पास जाओ और वहां बैठ कर रोने लग जाना। कोई पूछे तो बता देना कि उसके पति श्रीदत्त ने उसकी नाक काटी है। 

जयश्री ने ऐसा ही किया और उसका रोना सुनकर सभी इकट्ठे हो गए। जब उसका पति उठा जागा तो उसको सारा हाल मालूम हुआ और वह बड़ा ही दुखी हुआ। 

लड़की के बाप ने कोतवाल को खबर दे दी और कोतवाल उन सभी को राजा के पास लेकर गया। लड़की की हालत देखकर राजा को बहुत क्रोध आया और श्रीदत्त को सूली पर लटकाने का आदेश दे दिया। 

चोर वहां खड़ा यह सब कुछ देख रहा था और जानता था कि श्रीदत्त बिल्कुल बेकसूर है। उसको अकारण ही सूली पर लटकाया जा रहा है। चोर राजा के समक्ष आता है और सारा सच बता देता है।

चोर बोला - अगर आपको मेरी बात का विश्वास नहीं तो आप उस मृत व्यक्ति के पास जा कर देखिए, अभी भी उसके मुंह में स्त्री का नाक है। राजा ने जब तहकीकात की तो बात सच निकली। 

इतना कहकर तोता - बोला राजन स्त्रियां ऐसी होती है। राजा ने उस स्त्री का सर मुंडवा कर, गधे पर चढ़ाकर पूरे नगर में घुमाया और शहर के बाहर चौराहे पर छुड़वा दिया। 

यह कहानी सुनाकर बेताल बोला - राजन अब तुम बताओ कि दोनों में से ज्यादा पापी कौन? 

राजा ने कहा - स्त्री।

बेताल ने पूछा - स्त्री ही क्यों?

राजा विक्रम ने कहा - मर्द कैसा ही दुष्ट हो, उसे धर्म का थोड़ा-बहुत विचार होता ही है। स्त्री को नहीं रहता। अब चोर को ही देखो वह दोनों से ज्यादा दुष्ट है लेकिन जब उसने बेकसूर आदमी को मरते हुए देखा तो उसने उससे रहा नहीं गया और उसने खुद की परवाह किए बिना ही राजा को सारी बात सच बता दी। इसलिए स्त्री अधिक पापी होती है। 

राजा विक्रम के इतना कहते ही बेताल वापस पीपल के पेड़ पर जाकर लटक गया और राजा विक्रम दुबारा बेताल को पेड़ से नीचे उतार कर निकल पड़े। 

बेताल दुबारा राजा विक्रम को अपनी चालाकी से बातों में फसाकर फिर एक कहानी सुनाता है।






आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 5

राजकुमारी से किसका विवाह होना चाहिए | विक्रम बेताल की कहानी भाग 5

राजकुमारी से किसका विवाह होना चाहिए | विक्रम बेताल की कहानी भाग 5 | विक्रम बेताल की कहानी

मगधदेश में महाबल राजा का शासन था। जिसकी पुत्री महादेवी बहुत ही रूपवती और आदित्य थी। जब राजकुमारी महादेवी ब्याह के योग्य हो गई। तब राजा को महादेवी की चिंता होने लगी। कई राजकुमार आए लेकिन राजकुमारी महादेवी को कोई भी पसंद नहीं आया।

महाबल में सोचा – जो राजकुमार बहुत शक्तिशाली गुणवान होगा, वही राजकुमारी महादेवी से विवाह करेगा। 

एक दिन महाबल राजा के दरबार में एक राजकुमार आता है और कहता है – मैं राजकुमारी महादेवी का हाथ आप से मांगने आया हूं।

राजा बोला – मैं अपनी पुत्री का विवाह उसी से करूगा जिसमें सब गुण होंगे जो सर्वगुण संपन्न होगा।

राजकुमार ने कहा – मेरे पास ऐसा रथ है जिस पर बैठकर, पल भर में आप जहां मर्जी पहुंच जाओगे। 

राजा महाबल बोला – ठीक है। आप कुछ दिन इंतजार करें। मैं अपनी पुत्री से पूछ कर बताता हूं। 

फिर एक दिन एक नया राजकुमार आता है जो कहता है – मैं त्रिकालदर्शी हूं अर्थात में भूतकाल वर्तमान काल और भविष्य काल तीनों की बातें जानता हूं। 

राजा उसे भी इंतजार करने को कहता है। 

कुछ दिनों के पश्चात पुनः एक नया राजकुमार आता है जो कहता है – मैं धनुर्विद्या में निपुण हूं। धनुष चलाने में कोई भी मेरा मुकाबला नहीं कर सकता। 

इस प्रकार 3 वर राजकुमारी महादेवी के लिए एकत्र हो जाते है। राजा महाबल सोचते है कि मेरी पुत्री एक है। और राजकुमार 3 और तीनों ही राजकुमार बहुत सुंदर गुणवान है। अब क्या किया जाए ?

तब एक राक्षस राजकुमारी को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले कर चला जाता है। 

विक्रम बेताल की कहानी भाग 5 | विक्रम बेताल की कहानियां

तीनों राजकुमारों में से जो राजकुमार त्रिकालदर्शी था राजा उसके समक्ष जाकर बताता है – वह राजकुमारी को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया है। 

दूसरे राजकुमार ने कहा – आप मेरे रथ पर बैठे, कुछ पलों में ही हम विंध्याचल पर्वत पहुंच जाएंगे। 

तीसरा राजकुमार बोला – मैं शब्दभेदी बाण चलाना जानता हूं और मेरे लिए राक्षस को मारना बहुत आसान है। 

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

वे सभी रथ पर बैठकर विंध्याचल पर्वत पहुंचे और राक्षस को मारकर राजकुमारी को सुरक्षित वापस ले आए। 

इतना कहकर बेताल बोला – हे राजन आप न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य है। आप ही न्याय करो कि राजकुमारी से किसका विवाह होना चाहिए ?

राजा विक्रम ने कहा – जिसने राक्षस को खत्म किया उससे राजकुमारी का विवाह होना चाहिए, क्योंकि असलता में वीर वही है बाकी दो राजकुमारों ने तो राजकुमारी की मदद की है। एक ने ज्ञान से और दूसरे ने रथ से।

इतना कहते ही बेताल पुनः पीपल के पेड़ पर जाकर उल्टा लटक गया और राजा विक्रम दोबारा से बेताल को लेकर आ गए निकल पड़े।

रास्ते में बेताल फिर एक नई कहानी राजा विक्रम को सुनाता है।





आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 6

विक्रम बेताल की कहानी भाग 6

स्त्री किसकी हुई ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 6 | विक्रम बेताल की कहानी

धर्मपुर नगरी में धर्मशील राजा राज करता था। राजा के अंधक नाम का दीवान भी था। एक दिन दीवान कहता है महाराज मंदिर बनवा कर देवी को बैठा कर पूजा की जाए तो बहुत बड़ा पुण्य मिलेगा।

राजा दीवान के कहे अनुसार करता है। एक दिन देवी मां प्रसन्न होकर राजा को वर मांगने को कहती हैं धर्मशील राजा की कोई संतान नहीं थी तो उसने देवी से पुत्र प्राप्ति की मांग की देवी ने बोला अच्छी बात है राजा तुझे बहुत बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।

कुछ दिन बाद राजा को एक लड़का हुआ सभी राजा को पुत्र प्राप्ति की खुशी में खुश थे। 

एक दिन धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आता है। धोबी की नजर देवी के मंदिर पर गई। उसने देवी मां को प्रणाम किया। उसी समय उसको एक धोबी की लड़की दिखी जो बहुत ही सुंदर और रूपवान थी। धोबी उसको देखकर उसकी तरफ आकर्षित हो गया। उसने मंदिर में जाकर प्रार्थना की - हे देवी मां यह लड़की मुझे मिल जाए, तो मैं तुझ पर अपना शीश चढ़ा दूंगा।

इसके बाद वह धोबी हर घड़ी बेचैन रहने लगा। जब उसके पिता को उसके मित्र से पूरा हाल मालूम हुआ तो वह अपने बेटे की यह हालत देखकर लड़की के पिता के पास जाता है और उनसे अपने पुत्र का विवाह उसकी सुंदर कन्या से करने का आग्रह करता है।

इसके बाद दोनों का विवाह हो जाता है।

विक्रम बेताल की कहानियां | Vikram Betal Ki Kahani

कुछ दिन के बाद लड़की के पिता यहां उत्सव हुआ। जिसमें लड़के को शामिल होने का न्योता आया। तो वह अपनी पत्नी और मित्र को साथ लेकर रास्ते में चलते है।

रास्ते में देवी का मंदिर दिखाई दिया तो धोबी को अपना वादा याद आया। उसने मित्र और अपनी पत्नी को थोड़ी देर रुकने के लिए कहा और खुद देवी के मंदिर में जाकर तलवार से अपना शीश काटकर देवी के चरणों में अर्पित कर दिया। 

जब देर हो जाने के पश्चात उसका मित्र देवी के मंदिर में गया तो देखा कि धोबी का शीश और शरीर दोनों अलग-अलग पड़े है। 

उसने यह सोचा कि यह सब यह सोचेंगे कि उसने, ही अपने मित्र की पत्नी सुंदर पत्नी को हड़पने के लिए, हत्या की है। इससे अच्छा है कि मैं भी इसी तलवार से अपना शीश काट लू। इसके बाद उसने भी अपनी अपना शीश काट लेता है। 

बाहर खड़ी धोबी की पत्नी इंतजार में व्याकुल हो रही थी। थोड़ी देर बाद जब वो भीतर गई तो वह देखती है की दोनो के सर धड़ से अलग पड़े है। वह सोचने लगी कि दुनिया बहुत बुरी है। यह सोचेंगी की इस औरत ने इन दोनों को मार दिया।

इसलिए मेरी बदनामी हो उससे अच्छा है कि मुझे मर जाना चाहिए। जैसे ही वह स्त्री तलवार को अपनी गर्दन पर रखती है देवी प्रकट होती है।

विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

देवी कहती हैं - मैं तुझ पर बहुत प्रसन्न हूं तुम जो चाहे वर मांग लो। 

स्त्री बोली - हे देवी मां इन दोनों को वापस जिंदा कर दो। 

देवी ने कहा - अच्छा तुम दोनों के सिर मिला कर रखो। 

घबराहट में स्त्री ने दोनों व्यक्तियों के सिर अलग-अलग जोड़ दिए  एक का शीश दूसरे के धड़ पर लगा दिया और दूसरे का धड़ पहले के सिर पर लगा दिया। 

जैसे ही देवी ने दोनों को जिंदा किया तो वे आपस में झगड़ने लगे। एक कहता मेरी स्त्री है दूसरा कहता मेरी स्त्री है। 

इतनी कहानी सुनाने के बाद बेताल बोला - हे राजन बताओ वह किसकी स्त्री हुयी ?

राजा ने कहा - नदियों में गंगा उत्तम। पर्वतों में सुमेरू,वृक्षों में कल्पवृक्ष, और अंगों में सिर। इसलिए जिस शरीर पर पति का सिर लगा हो वही उसका पति होना चाहिए।

इतना कहकर बेताल पेड़ पर जा लटका। राजा उसे वापस पकड़ कर लाता है और नगर को निकल पड़ते है। 






आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 7

विक्रम बेताल की कहानी भाग 7

राजा और सेवक में बड़ा कौन | विक्रम बेताल की कहानी भाग 7

तो सुनिए आज की विक्रम बेताल की कहानी। बेताल कहानी सुनाने के बाद वापस पेड़ पर जाकर लटक जाता है और एक बार फिर राजा विक्रमादित्य बेताल को पेड़ से उतारकर के योगी के पास ले जाने के लिए आगे बढ़ते है।

हर बार की तरह इस बार भी बेताल राजन को एक कहानी सुनाता है।

आज की कहानी का शीर्षक है राजा और सेवक में किसका काम बड़ा।

एक समय की बात है मिथिलावती नाम का एक नगर था जहां गुणधिप राजा का शासन था। राजा से मिलने के लिए रोजाना दूर-दूर से लोग आया करते थे। एक बार उनसे मिलने और उनकी सेवा करने के लिए किसी राज्य से एक युवक आया।

युवक ने राजा से मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन वह राजा से मिल नहीं पाया। अपने साथ युवक जो भी सामान लाया था वह सब खत्म हो गया था।

एक दिन की बात है जब राजा शिकार के लिए जंगल जाते है। युवक भी उनके पीछे-पीछे चला जाता है। जंगल इतना घना था कि राजा से उनके नौकर बिछड़ जाते है। बस राजा और युवक साथ रह जाते है।

जब राजा जंगल की ओर आगे बढ़ने लगते है तो युवक राजा को रोकता है। राजा उसकी तरफ देखते हुए कहते है - तुम इतने कमजोर क्यों लग रहे हो?

युवक जवाब देता है - राजन यह मेरा करम दोष है। मैं कई राजाओं के पास रहा हूं जो हजारों लोगों को पालता है लेकिन उनकी नजर कभी मुझ पर नहीं पड़ी।

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए युवक बोलता है राजन 6 बातें इंसान को कमजोर बनाते है -

  1. गलत व्यक्ति से प्रेम 
  2. बिना कारण हंसना
  3. स्त्री से बहस करना
  4. बुरे स्वामी के लिए काम करना
  5. गधे पर सवारी और
  6. संस्कृत के बिना भाषा

इसके अलावा पांच चीजें -

  1. आयु
  2. कर्म
  3. धन
  4. विद्या और
  5. यश

व्यक्ति के जन्म के साथ ही विधाता उनके नसीब में लिख देता है।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

जब तक कोई पुण्य करता है तब तक उसके पास सेवा करने के लिए बहुत से दास होते है। जब पुण्य कम हो जाता है तो भाई ही भाई का दुश्मन बन जाता है। लेकिन राजन स्वामी की सेवा का फल किसी ना किसी दिन जरूर मिलता है।

युवक की इन बातों का राजा पर बहुत असर हुआ। थोड़ी देर बाद दोनों नगर को लौटाए। राजा उस युवक को नौकरी पर रख लेता है।

कुछ दिन बाद युवक किसी काम से बाहर जाता है उसे रास्ते में एक मंदिर दिखाई देता है। वह अंदर जाता है और वहां स्थापित देवी की पूजा करता है और बाहर आता है तो वहां उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई देती है। युवक उस स्त्री पर मोहित हो जाता है।

वह स्त्री युवक से कहती है - तुम इस कुंड के पानी से स्नान करो फिर तुम जो कहोगे वह मैं करूंगी।

स्त्री की बातें सुनकर युवक गोता लगाता है। गोता लगाते ही वह अपने नगर पहुंच जाते है। युवक राजा को पूरी बात बताता है।

फिर राजा कहता है - मुझे भी वहां ले चलो। मैं भी ये चमत्कार देखना चाहता हूं, फिर दोनों घोड़े पर बैठकर मंदिर की ओर जाते है।

मंदिर पहुंचकर वह दोनों दर्शन करते है और जब बाहर निकलते है तो उन्हें वहां पर एक स्त्री मिलती है जो राजा पर मोहित हो जाती है। और कहती है - आप जो कहोगे मैं वही करूंगी।

यह सुनकर राजा कहता है तुम इस सेवक से शादी कर लो।

राजा की बात सुनकर स्त्री कहती है - मुझे तो आप पसंद हो।

फिर राजा उस स्त्री से कहता है - सज्जन इंसान से जो कहता है उस बात की निभाता भी है। इसलिए तुम्हे अपनी बात का पालन करना चाहिए।

फिर उस स्त्री और युवक का विवाह हो जाता है।

इस कहानी को सुनने के बाद बेताल बोलता है - अब बताओ कि राजा और सेवक में किसका काम बढ़ा हुआ?

राजा विक्रमादित्य ने कहा - नौकर का काम बढ़ा हुआ।

बेताल पूछता है - कैसे?

राजा विक्रमादित्य कहते है - उपकार करना एक राजा का धर्म होता है लेकिन जिसका धर्म नहीं था उसने उपकार किया है तो युवक का काम बढ़ा हुआ।

राजा का जवाब सुनकर बेताल बेहद खुश हुआ और बोला - राजन तूने मुंह खोल दिया। अब मैं चला।

 सीख  -  कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपने वादे का पालन करना चाहिए और उसे हर कीमत पर पूरा करना चाहिए।

तो आज की विक्रम बेताल की कहानी में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ सुनते रहिए Rahasyo Ki Duniya पर विक्रम बेताल की कहानियां







आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 8

विक्रम बेताल की कहानी भाग 8

तीन अजूबे भाई | विक्रम बेताल की कहानी भाग 8

अंग देश में एक धनवान ब्राह्मण रहता था। तीन बेटे थे एक बार ब्राह्मण ने यज्ञ करने की सोची व्यक्ति के लिए समुद्री कछुए की जरूरत पड़ी। ब्राह्मण ने अपने तीनों बेटों से समुद्री कछुआ लाने को कहा।

तीनों पुत्र समुद्र तट पर जाते है। जहां उनको एक कछुआ मिला।

बड़े बेटे ने कहा - मैं भोजन चंग हूं इसलिए मैं कछुए को नहीं ले जाऊगा।

दूसरा बेटा बोला - मैं नारी चंग हूं इसलिए मैं इस कछुए को नहीं ले जाऊगा।

तीसरा सबसे छोटा बेटा बोला - मैं शैया चंग हूं तो मैं इस कछुए को नहीं लेकर जाऊंगा।

तीनों बेटे वही समुद्र तट पर बहस करने लगे। जब वे आपस में कछुए ले जाने का फैसला न कर पाए तो राजा के समक्ष पहुंचे।

राजा ने कहा - आप तीनों रूको। मैं आप दोनों की अलग-अलग तहकीकात कर लूंगा। इसके बाद राजा नेस्वादिष्ट भोजन तैयार कर, तीनों को खाने के लिए बैठाया।

सबसे बड़े बेटे ने कहा - मैं भोजन नहीं खाऊंगा, क्योंकि इसमें मुर्दे की गंध आ रही है। वह उठकर चला गया।

राजा ने पता लगाया तो भोजन शमशान के नजदीक वाले खेत का बना हुआ था। राजा ने कहा तुम सचमुच में भोजन चंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान है।

रात के समय राजा ने दूसरे भाई के समक्ष एक सुंदर स्त्री को भेजा। जैसे ही स्त्री मजे ले भाई के नजदीक गई तो उसने कहा - इसे हटाओ इसके शरीर से बकरी की दुर्गंध आ रही है।

विक्रम बेताल की कहानी | Vikram Betal Ki Kahani

राजा ने जब पता लगाया तो पता चला कि बचपन में भरण पोषण का स्त्री बकरी के दूध से हुआ है।

राजा बहुत खुश हुआ और बोला कि सचमुच में तुम नारीचंग हो। 

इसके बाद राजा ने तीसरे भाई को सोने के लिए सात गद्दों का बिस्तर दिया जैसे ही वह उस पर लेटा तो एकदम से चिल्लाकर कर बैठ गया।

लोगों ने देखा तो उसकी पीठ पर एक लाल रेखा खींची हुई थी। राजा को जब खबर मिली तो उसने बिस्तर  कराइ तो नीचे एक बाल निकला और उसी से तीसरे भाई की पीठ पर लाल लकीर हो गई थी।

राजा को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उसने तीनों को 1-1 लाख सोने की मोहरें दी। इसके पश्चात वे तीनों कछुआ ले जाना भूल गए और वहीं राजा के नगर में रहने लगे।

इतना कहकर बेताल बोला - हे राजन अब बताओ तीनों में से बढ़कर कौन था ?

राजा विक्रमादित्य ने कहा - मेरे विचार से शैयाचंग था क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूंढने पर बिस्तर में बाल भी मिला। बाकी दो के बारे में कह सकते है कि उन्होंने किसी से पूछ कर जान लिया होगा।

इतना कहते ही बेताल पुनः पीपल के पेड़ पर जाकर उल्टा लटक गया और राजा विक्रम दोबारा से बेताल को लेकर आ गए निकल पड़े।

रास्ते में बेताल फिर एक नई कहानी राजा विक्रम को सुनाता है।







आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 9

विक्रम बेताल की कहानी भाग 9

उत्तम वर कौन | विक्रम बेताल की कहानी भाग 9

एक नगर था घर मे मक्केश्वर नाम का एक राजा शासन करता था। उसकी सुलोचना नाम की रानी थी। एक राजकुमारी भी थी जिसका नाम शशिबाला था। शशिबाला में यथा नाम और गुण थे। शादी योग्य हुई तो उसका रूप और निखर गया। शशीबाला के यौवन के चर्चे दूर-दूर तक नगरियों में होने लगे थे।

राजा और रानी को उसके ब्याह की फिक्र होने लगी। राजा ने विवाह के लिए चारों ओर खबर फैलावा दी। नजदीकी देशों से शशि बाला के लिए ही रिश्ते आने लगी थे।

दूर-दराज के राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर शशिबाला के विवाह के लिए भेजी पर राजकुमारी को उनमें से कोई भी पसंद नहीं आया।

राजा शशिबाला से कहता है बेटी कहो तो मैं तुम्हारे लिए एक स्व्यंबर कराऊ। लेकिन लेकिन शशिबाला मानी नहीं।

राजा ने तय किया कि शशि बाला का विवाह उसी व्यक्ति से होगा जो रूप,बल और ज्ञान इन तीनों में ही बड़ा निपुण होगा।

एक राजा के पास 4 देशों से 4 बार आए। नगर के राजकुमार ने कहा मेरे जैसा रेशम वस्त्र कोई नहीं मना सकता मैं एक कपड़ा मना कर 5लाख तक के मूल्य में बेचता हूं, विद्या को मेरा अलावा इस सृष्टि में कोई नहीं जानता।

उसने राजा को कई रेशमी वस्त्र दिखाएं और दिए। सभी वस्त्र चमकदार थे उन्हें देखकर राजा आश्चर्यचकित हो गया।

अवंती से आए राजकुमार ने कहा मैं जल-थल में पशुओं की भाषा को समझ सकता हूं। हवा में शरीर के सभी अंगों के बारे में जानता हूं। मैं राजकुमारी को कभी कोई शारीरिक कष्ट नहीं होने दूंगा।

चोल देश से आए राजकुमार ने कहा मैं शब्दभेदी बाण चलाना जानता हूं। धनुर्विद्या में मुझे कोई पराजित नहीं कर सकता।

बंग देश से आए राजकुमार ने कहा मैं इतना शास्त्र पढ़ा हुआ हूं कि मुझसे कोई शास्त्र विद्या में मुकाबला भी नहीं कर सकता। वेदों,पुराणों से लेकर गीतो तक सब कुछ मुझे कंठस्थ याद है।

विक्रम बेताल की कहानी | Vikram Betal Ki Kahani

की बातें सुनकर राजा सोच में पड़ गए। चारु राजकुमार सुंदरता में भी एक-से-एक बढ़कर थे।

शशि बाला को बुधवा कर उन चारों राजकुमारों के गुण और रूपों का वर्णन किया पर शशिबाला चुप खड़ी रही।

बेताल बोला राजन तुम बताओ कि राजकुमारी को उन चारों वरो में से किस से विवाह करना चाहिए?

विक्रम बोला जो राजकुमार कपड़ा बना कर भेजता है,वह शुद्र है। जो पशुओं की बात भाषा तथा शरीर के अंगों के बारे में जानता है,वह वैश्य हैं। शास्त्र पड़ा हुआ है,वह ब्राह्मण है। शब्दभेदी बाण चलाना जानता है मैं राजकुमारी के लिए सजातीय हैं उसके योग्य हैं। राजकुमारी उसे ही मिलनी चाहिए।

राजा विक्रम के इतना कहते ही बेताल भयानक अट्टहास करते हुए वहां से गायब हो गया।

फिर उसे उस पीपल की पेड़ से लेकर नगर की ओर चल दिए।






आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 10

विक्रम बेताल की कहानी भाग 10

सबसे बड़ा त्यागी कौन ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 10

गांधार देश में ब्रह्मदत्त राजा का शासन था। उसी राज्य में एक वैश्य हिरण दत्त नाम का वैश्य भी रहता था। जिसके मदनसेना नामक एक पुत्री थी। 

एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गई हुई थी। तभी संयोगवश वहां सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ वहां आया हुआ था। 

धर्म दत्त मदनसेना को देख कर उस पर मोहित हो गया और मन ही मन उस से प्रेम करने लगा। धर्मदत्त घर लौट आया, लेकिन पूरी रात वह बेचैन रहा। 

अगले दिन वह वापस से बाग में गया। जहां मदन सेना अकेली बैठी थी। धर्मदत्त मदन सेना के पास जाकर अपने प्रेम का प्रस्ताव रखता है लेकिन मदनसेना इनकार कर देती है। 

बहुत कहने के बाद मदानसेना नहीं मानी तो धर्मदत्त ने कहा - यदि तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं तुम्हारे लिए अपनी जान दे दूंगा और इतना कहकर धर्मदत्त पास में बह रही नदी में कूद गया। 

मदनसेना सोचने लगी कि जब डूबने लगेगा तो अपने आप ही बाहर निकल आएगा। लेकिन काफी देर हो जाने के बाद जब धर्मदत्त बाहर नहीं आया तो मदनसेना उसको बचाने के लिए नदी में कूदी और उसको बचाकर नदी से बाहर ले आई।

मदनसेना - तुम कितने मूर्ख हो। तुम बाहर क्यों नहीं आए कितनी देर हो गई थी। यदि तुम नदी में डूब कर मर जाते तो। 

धर्मदत्त - मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। मैं अपने प्राण देने के लिए ही नदी में कूदा था, मुझे तैरना नहीं आता। 

यह जानकर मदनसेना का ह्रदय पिघल गया और वह कुछ नहीं बोली। 

फिर धर्मदत्त बोला - मदनसेना मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूं। मैं पूर्णिमा की रात्रि तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा, तुम जरूर आना।

मदनसेना - यदि ईश्वर ने चाहा तो मैं जरूर आऊंगी। इतना वार्तालाप होने के बाद वह अपने घर चली जाती है। 

उधर मदनसेना को देखने उसके घर लड़के वाले आए हुए थे। मदनसेना के माता पिता को लड़का पसंद था और लड़की वालों को भी मदानसेना पसंद थी। 

बात कुछ यूं थी कि लड़के की दादी का अंत समय नजदीक था और वह अपनी मृत्यु से पहले अपने पोते का ब्याह होते हुए देखना चाहते थे। इसलिए जल्दी ही मदनसेना का विवाह करने का फैसला कर लिया गया। 

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

मदन सेना अपने माता-पिता की इच्छा को टाल न सकी और उसका विवाह कर दिया गया। 

जब मदनसेना अपने पति के पास गई तो वह उदास होकर बोली - यदि आप मुझ पर विश्वास करे और मुझे अभयदान दे तो मैं आपको एक बात बताऊं। 

पति ने विश्वास दिलाया और वचन दिया तो मदनसेना ने सारी बात बताई। 

मदनसेना की बात सुनकर पति ने उसको चरित्रहीन समझा और मन ही मन उसका त्याग कर दिया। मदनसेना को जाने की आज्ञा भी दे दी और उसका पीछा करने लगा। 

मदन सेना नए कपड़े और गहने पहन कर जा रही थी तभी रास्ते में उसको एक चोर मिला। जिसने मदनसेना का आंचल पकड़ लिया। 

मदनसेना - तुम मुझे छोड़ दो मेरे गहने लेना चाहते हो तो ले लो, बस मुझे जाने दो।

चोर बोला - मैं तो तुम्हें पाना चाहता हूं। 

मदन सेना ने चोर को भी सारा हाल बताया और कहा कि मैं पहले वहां जा आऊं फिर तुम्हारे पास आऊंगी। 

चोर ने उसे छोड़ दिया और चोर भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। थोड़ी देर पश्चात मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुंची। 

उसे देख कर धर्मदत् बहुत ही खुश हुआ। और पूछा की तुम अपने पति से बचकर यहां तक कैसे आई? 

तो मदनसेना ने सारी बात धर्मदत्त को बता दी। इसके पश्चात धर्मदत्त पर सभी बातों का बहुत असर पड़ा और उसने मदनसेना के साथ वक्त बिताना अच्छा नहीं लगा। उसने मदनसेना को समझा कर वापस उसके घर जाने के लिए कहा, तो मदनसेना अपने घर की तरफ चल पड़ी। 

रास्ते में फिर वह चोर के पास गई। चोर सबकुछ जानकर बहुत प्रभावित हुआ और उसे खुद पर ग्लानि होने लगी तो उसने मदनसेना को बिना कुछ किए ही वापस घर लौटने दिया। 

इस प्रकार मदनसेना सब से बचकर अपने पति के पास वापस आ गई। पति ने भी सारा हाल अपनी आंखों से देख लिया था तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और दोनों आनंद से रहने लगे। 

इतनी कहानी सुना कर बेताल बोला - हे राजन बताओ आपकी नजर में न्याय क्या कहता है? पति, चोर और ब्रह्मदत्त में कौन सबसे अधिक सबसे बड़ा त्यागी है? 

राजा विक्रम ने कहा - जो त्याग बिना स्वार्थ के किया जाए वही सच्चा त्याग है। चोर का त्याग सबसे बड़ा त्यागी है, क्योंकि पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने के कारण त्याग देता है धर्मदत्त का मन इसलिए बदल गया कि उसे भी यह डर लग रहा होगा कि कहीं इसका पति राजा के समक्ष जाकर उसको दंड ना दिलवा दे। लेकिन चोर का तो किसी को भी नहीं पता था इसके बावजूद चोर ने मदनसेना गहने भी नही लिए और न ही उसको कोई क्षति पहुंचाई। इसलिए उन दोनों में अधिक त्यागी चोर था।

राजा का जवाब सुनकर - बेताल बड़ा खुश हुआ और बोला राजा सच में तुम बहुत ही न्याय प्रिय हो। तुम्हारा न्याय विश्व विख्यात होगा।

बेताल हंसकर बोला - राजन तुमने मू्ह खोला, मैं चला।

इतना कहकर बेताल वापस से पेड़ पर जा लटका और राजा विक्रम वापस बेताल के पीछे-पीछे जाकर वेताल को पेड़ से नीचे उतारकर आगे बढ़ते है।

 सीख  -  कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपने धर्म का पालन करना चाहिए और त्याग से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

तो आज की विक्रम बेताल की कहानी में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ सुनते रहिए Rahasyo Ki Duniya पर विक्रम बेताल की कहानियां








आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 11

विक्रम बेताल की कहानी भाग 11

सबसे अधिक कोमल कौन है? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 11

जैसा कि आपको पता है कि राजा विक्रम बेताल को पकड़कर एक योगी के पास ले जा रहे होते है और सफर के दौरान बेताल राजा विक्रम को कहानी सुनाता है।

आज की कहानी का शीर्षक है अधिक कोमल कौन

एक समय की बात है गौड़ नाम के देश में गुड़शेखर राजा का राज हुआ करता था। राजा इतना शक्तिशाली था कि उसकी चर्चा दूर-दूर के राज्यों तक फैली हुई थी। उस राजा की तीन सुंदर बेटियां थी। तीनों इतनी कोमल थी कि राजा को अक्सर उनकी चिंता लगी रहती थी।

राजा की सबसे बड़ी बेटी इतनी कोमल थी कि चांद के प्रकाश से ही उसके शरीर पर छाले पड़ जाते थे।

दूसरी बेटी को गुलाब के फूल जैसी नाजुक चीज से टकराने पर भी चोट लग जाती थी और खून बहने लगता था।

तीसर के कानों में किसी के चलने या कुछ कूटने की आवाज पहुंचते ही उसके हाथ पांव पर छाले पड़ जाते थे।

हर कोई उनकी इस कोलमता के बारे में सुनकर हैरान रह जाता था। कई राजकुमार उनसे शादी करना चाहते थे लेकिन उनकी कोमलता के बारे में जानकर इनकार कर देते थे।

राजा को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। उन्हें लगने लगा की इस कठोर संसार में उनकी कोमल बेटियां कैसे जी पाएगी। तब राजा ने फैसला लिया कि वो पहली बेटी को हमेशा छांव में ही रखेगे ताकि किसी तरह की रोशनी की वजह से उसके शरीर पर छाले नही पड़े।

राजा ने दूसरी बेटी को हल्के कपड़ों के साथ ऐसी जगह रखने का फैसला किया जहां कोई भी चीज उससे न टकराए।

राजा ने तीसरी बेटी को ऐसी जगह रखा, जहा किसी की भी आवाज न पहुंच पाए।

इसी दौरान पड़ोसी राज्य का राजकुमार उनकी कोमलता के बारे में सुनने के बाद गौड देश पहुंच गया। सबसे पहले राजकुमारी के चेहरे को गुलाब के फूल का स्पर्श कराया जिससे राजकुमारी के चेहरे पर घाव के निशान बन गए। राजकुमार हैरान रह गया।

इसके अपनी दूसरी राजकुमारी को चांदनी रात में जाने के लिए कहा लेकिन जब राजकुमारी ने मना कर दिया तो वह उसको खिड़की के पास ले गया, जहां चांद की रोशनी पड़ रही थी चांद की रोशनी राजकुमारी पर पड़ते ही उसके शरीर पर छाले पड़ गए।

अगले दिन राजकुमार ने सभी लोगों से मसाला कूटने को कहा, जिसकी आवाज सुनकर सबसे छोटी राजकुमारी बेहोश हो गई।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

इतनी कहानी सुनाकर बेताल एकदम चुप हो गया और राजा विक्रम से पूछा - महाराज यह बताइए कि इन तीन राजकुमारीयों में से सबसे अधिक सुकुमारी और कोमल कौन सी है और राजकुमार कौन सी राजकुमारी से विवाह करेगा?

सवाल सुनने के बाद भी राजा विक्रमादित्य ने कोई जवाब नहीं दिया।

बेताल ने कहा - राजन जवाब बता होने के बाद भी आप उत्तर नहीं देंगे तो मैं अपने तेज से आपका सर धड़ से अलग कर दूंगा।

इतना सुनने के बाद राजा बोले - तीसरी राजकुमारी सबसे अधिक कोमल है क्योंकि बिना कुछ किए ही उसके हाथ पैर पर छाले पड़ रहे हैं और वो बेहोश हो रही है। वह सिर्फ तन से नहीं मन से भी कोमल है इसी वजह से राजकुमारी से विवाह करेगा।

राजा विक्रम का जवाब सुनकर बेताल बहुत खुश और बोला - राजन तूने मूह खोल दिया अब मैं चला। इतना कहकर बेताल एक बार फिर से उड़ जाता है।

 सीख  -  इस कहानी से यह सीख मिलती है कि इंसान को अपने मन साफ रखना चाहिए। साफ मन वाले लोग दूसरे के दुख को पहचान लेते है।

तो आज की विक्रम बेताल की कहानी में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ सुनते रहे रहस्यों की दुनिया पर विक्रम बेताल की कहानियां







आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 12

विक्रम बेताल की कहानी भाग 12

आखिर मंत्री क्यों मरा ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 12

एक समय पुण्यपुर नामक राज्य में यशकेतू राजा का शासन था। उनका मंत्री सत्यमणि बड़ा ही समझदार कर्मठ और चतुर था लेकिन राजा भोग-विलासिता के कारण राज्य का सारा उत्तरदायित्व मंत्री पर डालकर राजा भोग विलास में पड़ गया।

एक दिन राजा के दरबार में एक चित्रकार आया। जिसने एक से बढ़कर एक सुंदर चित्र राजा को दिखाएं। राजा उन चित्रों को देखकर उन पर मोहित हो गया। राजा ने चित्रकार को प्रसन्न होकर स्वर्ण से तौल दिया। सभी दरबारी राजा की पारखी नजर की जय-जयकार करने लगे। लेकिन सत्यमणि मंत्री बहुत ही दुखी हुआ।

राजा के भोग विलासिता और दानशीलता के कारण राजकोष भी धीरे-धीरे खाली होने लगा था। प्रजा राजा से निराश होने लगी। जब मंत्री ने देखा कि राजा के साथ साथ उसकी भी निंदा होती है तो मंत्री का मन राजपाट से हट गया और अपने मन की शांति के लिए मंत्री ने तीर्थ यात्रा करने की सोची।

राजा से अनुमति लेकर मंत्री तीर्थ यात्रा करने चला गया। एक दिन सत्यमणि घूमते-घूमते समुद्र किनारे जा पहुंचा और रात्रि में रात्रि के लिए वहीं ठहर गया।

आधी रात के समय उसने देखा, समुद्र से एक सुंदर वृक्ष निकल रहा है जिसकी अद्भुत रोशनी चारों तरफ फैली हुई है पेड़ पर हीरे मोती लगे हुए है उसकी मोटी मोटी शाखाओं पर रत्नों से जड़ा एक पलंग बिछा हुआ है जिस पर एक रूपवती कन्या बैठी हुई वीणा बजा रही थी।

इस दिव्य चमत्कार को देखकर मंत्री का कोई ठिकाना ना रहा। कुछ समय पश्चात वह पेड़ और रूपवती कन्या दोनों ही गायब हो गए।

यह सब नजारा देखकर मंत्री चकित हो गया। मंत्री अपने नगर वापस लौटा और राजा को सारा हाल बताया। इतने समय राजा भी सुधर गया था और राजा ने भोग विलासिता छोड़ दी थी।

मंत्री की सारी बातें सुनकर राजा का मन उस सुंदर कन्या को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठा। राजा ने वापस से मंत्री को सारा उत्तर दायित्व सौंपकर खुद तपस्वी का भेष बनाकर समुद्र के किनारे जा पहुंचा।

रात्रि के समय राजा ने देखा कि समुद्र के बीचो-बीच वही सुंदर वृक्ष जिस पर हीरे जड़े हीरे मोती लगे है और उस पर बने हुए पलंग पर एक सुंदर कन्या वीणा बजा रही है तो राजा तैरकर उसके पास पहुंचा।

कन्या ने राजा से पूछा - तुम कौन हो?

तब राजा ने अपना परिचय दिया है और उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा।

कन्या बोली - मैं गंधर्व विद्याधर की कन्या हूं मृंगाकवती मेरा नाम है। मैं आप जैसा गुणवान शक्तिशाली राजा से विवाह करके बहुत ही खुद को भाग्यशाली समझूंगी, लेकिन मेरी एक शर्त है।

राजा ने पूछा - कैसी शर्त?

मृंगाकवती ने राजा के समक्ष शर्त रखी कि हर महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की रात को एक राक्षस उसे अपने वश में कर निगल जाता है और जब राजा उस राक्षस को खत्म करेगा तब ही वह राजा से विवाह करेंगी।

इसके पश्चात शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को राजा छुपकर उस राक्षस का इंतजार करता है और अचानक से राजा ने देखा, एक राक्षस मृंगाकवती को निकल रहा है।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

तभी राजा ने अपनी दुधारी तलवार से राक्षस का सिर काट दिया और मृंगाकवती उसके पेट से जीवित निकल गयी।

राजा ने पूछा - यह क्या घटना है?

मृंगाकवती ने कहा - महाराज मेरे पिता मेरे बिना कभी भोजन नहीं करते थे। मैं अष्टमी और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव की पूजा करने यहां आती थी। एक दिन पूजा में देरी हो जाने के कारण मेरे पिता को भूखा रहना पड़ा। जब मैं देर से घर पहुंची तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने मुझे श्राप दिया कि चतुर्दशी के दिन जब मैं यहां पूजन के लिए आऊगी तो एक राक्षस मुझे निगल जाएगा और मैं उसका पेट चीर कर बाहर निकल लूंगी।

जब मैंने उनसे श्राप से मुक्त होने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा - जब पुण्यपुर देश का राजा तुमसे विवाह करना चाहेगा तो वह राजा ही उस राक्षस का अंत करेगा।

इसके बाद राजा उसे लेकर वापस नगर लौट आया और मंत्री को धूमधाम से विवाह करने की तैयारी करने का आदेश दिया। उसने सभी देश के राजाओं को विशेष आमंत्रण भेजें, बड़े-बड़े यज्ञ का आयोजन करने की तैयारी और देश के सुप्रसिद्ध नृत्यांगना, कलाकारों, संगीतकार, नाटककार को सम्मानपूर्वक बुलाने का आदेश दिया। तथा उनके लिए रानी के लिए उत्तम विश्रामगृह और एक नया महल बनाने को कहा।

जब मंत्री ने यह सब देखा और सुना तो उसका ह्रदय फट गया और मंत्री स्वर्ग सिधार गया।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - हे राजन! बताओ कि स्वामी की इतनी खुशी के समय मंत्री का ह्रदय क्यों फटा और वह क्यों मर गया?

राजा विक्रम ने कहा - मंत्री का ह्रदय इसलिए फटा क्योंकि उसने सोचा कि राजा वापस से स्त्री के चक्कर में पड़ गए और भोग विलासिता के कारण राज्य की फिर से दुर्दशा होगी। अच्छा होता मैं राजा को बताता ही नहीं।

राजा विक्रम का जवाब सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला - राजन तूने मुंह खोला अब मैं चला।

बेताल वापस पेड़ पर जा लटका और राजा विक्रम बेताल के पीछे पीछे उसको पेड़ से उतारने के लिए जाते हैं और उसको पेड़ से उतार कर वापस नगर को चल पड़ते है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 13

विक्रम बेताल की कहानी भाग 13

दोषी कौन है ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 13

चालाक बेताल राजा को पुनः अपनी चालाकी में फंसा कर उन्हें नई कहानी सुनाता है। 

इस कहानी का शीर्षक है - दोषी कौन है ?

बनारस में देवस्वामी नामक ब्राह्मण रहता था। जिसके पुत्र का नाम हरिदास था। हरिदास की पत्नी लावण्यवती बहुत ही सुंदर थी। एक दिन सभी महल की छत के ऊपर सो रहे थे। 

आधी रात के समय गंधर्वकुमार आकाश में घूमता हुआ आया। तब उसकी नजर लावण्यावती पर पड़ी। लावण्यवती को देखकर गंधर्व मोहित हो गया और उसका अपहरण कर ले गया। 

जागने पर जब हरिदास ने देखा कि उसकी पत्नी नहीं है तो उसको बहुत दुख हुआ और आत्महत्या करने को तैयार हो गया। लोगों के समझाने पर वह मान गया। लेकिन उसने सोचा की तीर्थ करने से शायद उसके सभी पाप दूर हो जाए और उसकी पत्नी मिल जाए। 

वह चलते-चलते एक गांव में ब्राह्मण के घर पहुंचा। उसको भूखा देखकर एक ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भर कर खीर दे दी। तालाब के किनारे बैठकर खाने को कहा ताकि उसको हाथ मुंह धोने और प्यास लगने पर पीने के लिए पानी भी मिल जाए।

खीर लेकर हरिदास पेड़ के नीचे गया और वहां खीर को रखकर तालाब में हाथ होने लग गया। उसी समय बाज किसी सांप को लेकर उस पेड़ पर बैठा और जब बाज सांप को खा रहा था तब सांप के मुंह से जहर टपक कर कटोरे में गिर गया।

हरिदास को कुछ पता नहीं था। जब हरिदास खीर खा गया तो उस पर जहर का असर होने लगा और वह तड़पने लगा। दौड़ कर ब्राह्मणी के पास गया और बोला तूने मुझे जहर दे दिया। इतना कहकर हरिदास मर गया।

ब्राह्मण जब यह देखा तो उस ब्राह्मणी को ब्रह्मघातनि कहकर उसे घर से निकाल दिया।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला- हे! राजन बताओ की ब्राह्मणी,बाज और साँप इन तीनो में से अपराधी कौन है ?

राजा ने कहा - कोई नहीं। सांप तो इसलिए नहीं कि वह शत्रु के वश में था। बाज इसलिए नहीं क्योंकि वह भूखा था उसे जो भी मिला वह उसी को खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं क्योंकि उसने अपना धर्म समझकर हरिदास को खीर खाने के लिए दी थी। इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा। वह खुद ही दोषी होगा। इसलिए अपराधी ब्राह्मणी का पति, जिसने बिना सोच-विचार किए ही ब्राह्मणी को घर से निकाल दिया।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

राजा का जवाब सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बेताल बोला राजन तू ने मुंह खोला अब मैं चला और वापस बेताल पेड़ पर जा लटका राजा विक्रम बेताल को पेड़ से नीचे उतारकर नगर को चलते है।

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आइए Vikram Betal Ki Kahaniविक्रम बेताल की कहानी भाग 14

विक्रम बेताल की कहानी भाग 14

चोर हँसने से पहले क्यों रोया ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 14

बहुत समय पहले अयोध्या नगरी में वीरकेतू राजा शासन करता था। अयोध्या नगरी में रतनदत्त नामक साहूकार था जिसकी सुंदर पुत्री थी। जिसका नाम रत्नावती था। रत्नावती हमेशा लड़के के भेष में रहती थी।

रत्नावती की सुंदरता पर कई राजा और सेेठ मोहित थे और उससे विवाह करना चाहते थे। लेकिन वह किसी से भी शादी नहीं करना चाहती थी। कई राजा महाराजाओं ने विवाह का प्रस्ताव भेजा लेकिन उसने सबको मना कर दिया। जिसके कारण साहूकार का दुख और भी बढ़ गया।

इन दिनों नगर में चोरियां होने लगी। जिसके कारण प्रजा दुखी होने लगी। कोशिश करने के बाद भी चोर पकड़ में नहीं आ रहा था तो राजा स्वयं खुद चोर को पकड़ने के लिए निकले।

रत्नावती की एक अजीब आदत थी कि उसे फल चुराकर खाने में बहुत आनंद आता था। इसी आदत से रत्नावती रात के समय पेड़ से एक फल तोड़ने की कोशिश कर रही थी और उसी समय चोर वहां से गुजर रहा था जब उसने रत्नावती को फल की चोरी करते देखा तो उसकी मदद की और उसे फल तोड़ना सिखाया।

रत्नावती प्रत्येक रात को फल तोड़ने आती और चोर भी उसी समय उधर से गुजरता तो उसकी मदद करता। धीरे-धीरे दोनों में प्रेम हो गया।

कई दिनों के बाद भी जब राजा को चोर पकड़ में नहीं आया तो उसने चोर को पकड़ने के लिए एक युक्ति सूझी। जैसे लोहा लोहे को काटता है वैसे ही राजा ने सोचा।

राजा ने एक युक्ति का प्रयोग किया। एक दिन रात के समय राजा धन की पोटली लेकर चोर के भेष में घूम रहा था तो परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया। राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया।

दोनों कुछ दूर जाने के बाद दोनों एक घर के पास पहुंचे। चोर पीछे की तरफ से घर में घुसा और राजा सामने वाले दरवाजे से। जब दोनों घर के अंदर पहुंचे तो दोनों की मुलाकात हुई।

चोर ने राजा से पूछा - तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो?

राजा ने कहा - मैं चोर हूं लेकिन तुम कौन हो?

चोर ने राजा की पोटली की तरफ देखा और कहा - अच्छा तब तो तुम मेरे साथी ही हो, सुबह होने को है। चलो आओ मेरे घर चलें।

दोनों चोर के घर पहुंचे। चोर राजा को बैठाकर कुछ काम करने के लिए चला गया। उसी समय एक दासी वहां आई और बोली तुम यहां क्यों आए हो, चोर तुम्हें मार डालेगा। यहां से भाग जाओ।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

राजा ने ऐसा ही किया और फौज लाकर चोर के घर को चारों तरफ से घेर लिया। जब चोर ने देखा तो राजा से लड़ने के लिए तैयार हो गया। दोनों में खूब लड़ाई हुई और आखिर में चोर हार गया।

राजा चोर को पकड़ कर राजधानी में लाया और सूली पर लटकाने का आदेश दे दिया।

संयोग से रत्नावती ने उसे देखा तो पिता से बोली - मैं इसके साथ ही शादी करूंगी नहीं तो मैं मर जाऊंगी। सेठ के पास कोई उपाय नहीं था क्योंकि रत्नावती को पहली बार कोई लड़का पसंद आया था।

साहूकार राजा के पास जाता है और चोर को आजाद करने के लिए जुर्माना भरने को तैयार हो जाता है लेकिन राजा उसकी बात नहीं मानता और चोर को सूली पर लटका दिया।

सूली पर लटकने से पहले चोर बहुत रोया और फिर खूब हंसा।

चोर के सूली पर लटकने के बाद रत्नावती वहां पहुंची और चोर के सिर को अपनी गोद में लेकर चिता में बैठकर सती हो गई।

उसी समय देवी ने आकाशवाणी की - मैं तेरी पतिभक्ति से बहुत प्रसन्न हूं जो चाहे सो मांग ले।

रत्नावती ने कहा - मेरे पिता को कोई पुत्र नहीं है उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो।

देवी बोली - यही होगा और कुछ मांग।

वह बोली - मेरा पति जीवित हो हो जाए।

देवी ने उसे जीवित कर दिया और दोनों का विवाह हो गया। जब राजा को मालूम हुआ तो राजा ने चोर को अपने दरबार में रख लिया।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल राजा से पूछा - हे राजन! बताओ सूली पर लटकने से पहले चोर जोर-जोर से क्यों रोया और फिर क्यों हंसते-हंसते मर गया?

तब राजा विक्रमादित्य कुछ नहीं बोले। फिर बेताल बोला राजन यदि तुम उत्तर जानने के बाद भी नहीं बोलोगे तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े कर दूंगा।

तब राजा विक्रमादित्य बोले - सुनो बेताल, चोर इसलिए रोया क्योंकि चोर ने चुराए हुए धन का कोई उपयोग नहीं किया और वह जिस शरीर के लिए चोरी कर रहा था अब उसको छोड़ देगा और वह हंसा इसलिए कि रत्नावती बड़े-बड़े राजाओं और धनवानो पर छोड़कर एक चोर पर मोहित होकर मरने को तैयार हो गई। स्त्री के मन को कोई नहीं समझ सकता।

इतना सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला राजा तुम बहुत बुद्धिमानी हो लेकिन नही बोलने की शर्त तुमने तोड़ दी। राजन अब मैं चला। और बेताल पेड़ पर जाकर लटक गया।

राजा विक्रम फिर पेड़ से बेताल को पेड़ से उतार कर चलते है और रास्ते में बेताल दुबारा से राजा विक्रम को एक नई कहानी सुनाता है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 15

विक्रम बेताल की कहानी भाग 15

शशिप्रभा किसकी पत्नी ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 15

नेपाल देश के शिवपुरी नगर में यशकेतु राजा राज करता था। जिसकी पत्नी चंद्रप्रभा नाम की रानी थी। राजा और रानी को शशिप्रभा नाम की एक पुत्री थी।

जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक दिन वसंत का उत्सव देखने बाग में गई। वही ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था। जब दोनों ने एक दूसरे को देखा तो प्रेम हो गया।

तभी अचानक वहां एक हाथी आ गया जो शशिप्रभा की तरफ दौड़ने लगा। तब ब्राह्मण युवक ने उसको बचा लिया और दूर ले गया।

इसके पश्चात शशिप्रभा महल में चली गई लेकिन ब्राह्मण के लड़के के लिए व्याकुल रहने लगी। उधर ब्राह्मण के लड़के की भी शशिप्रभा से वियोग के कारण बुरी दशा हो गई।

वह ब्राह्मण युवक अपने गुरु के पास पहुंचा और अपनी इच्छा बताई। गुरु ने एक योग गुटिका अपने मुंह में रखकर ब्राह्मण का रूप बना लिया और एक गुटिका ब्राह्मण लड़के के मुंह में रखकर उसे एक सुंदर लड़की बना दिया।

अब गुरु राजा के पास जाकर कहता है - मेरा एक ही बेटा है उसके लिए मैं इस लड़की को लाया था पर लड़का ना जाने कहां चला गया। आप इसे यहां रख लो मैं अपने लड़के को ढूंढने जाता हूं जब मिल जाएगा तो मैं इसे ले जाऊंगा।

इसके बाद सिद्ध गुरु चला गया और लड़की के भेष में ब्राह्मण युवक राजकुमारी के महल में रहने लगा। धीरे-धीरे दोनों में प्रेम और गहरा हो गया।

एक दिन राजकुमारी ने कहा - मेरा ह्रदय बहुत दुखी रहता है एक ब्राह्मण युवक ने पागल हाथी से मेरे प्राणों की रक्षा की थी और मेरे मन में अब बस वही बसा है।

इतना सुनकर उस लड़की ने अपने मुंह से गुटका निकाली और ब्राह्मण युवक बन गया। राजकुमारी उसे देख कर बहुत खुश हुई।

तब से रोज रात को वह लड़की बना ब्राह्मण युवक गुटिका निकालकर लड़का बन जाता और दिन में लड़की बनी रहती। कुछ दिनों बाद राजा के साले की कन्या का विवाह दीवान के बेटे के साथ होना तय हुआ।

राजकुमारी के साथ वह लड़की भी वहां गई और संयोग से दीवान का पुत्र उस बनावटी कन्या पर मोहित हो गया।

विवाह होने के पश्चात वह अपनी पत्नी मृगांकदत्ता को घर ले गया लेकिन उसका ह्रदय अभी भी उस बनावटी लड़की के लिए बेचैन रहने लगा। दीवान के लड़के की हालत दिनों-दिन बहुत खराब हो रही थी।

जब दीवान ने राजा को समाचार भेजा तो राजा आया और पूरी बात राजा को बताई। राजा के सामने सवाल थे की धरोहर के रूप में रखी गई ब्राह्मण कन्या को वह कैसे दे दे। और दूसरी मुश्किल यह है कि यदि दीवान के लड़के का विवाह नहीं हुआ तो वह मर जाएगा।

बहुत सोच विचार करने के बाद राजा ने दीवान की लड़की और उस बनावटी कन्या का विवाह कर दिया।

बनावटी कन्या ने यह शर्त रखी कि वह दूसरे के लिए लाई गई थी इसलिए उसका यह पति 6 महीने तक तीर्थ यात्रा करेगा तब वह उससे बात करेंगे।

दीवान का लड़का यह शर्त मान लेता है विवाह के बाद वह उसे मृगांकदत्ता के पास छोड़कर तीर्थ यात्रा पर निकल जाता है।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

दीवान के लड़के के तीर्थ यात्रा पर जाने के कुछ दिनों बाद ही कन्या रूपधारी ब्राह्मण का भेद मृगांकदत्ता के सामने खुल गया। जिसके बाद दोनों आनंद से रहने लगे अब ब्राह्मण कुमार रात में आदमी बन जाता और दिन में कन्या बना रहता।

जब 6 महीने बीतने को आए तो वह एक दिन मृगांकदत्ता को लेकर भाग गया। उधर सिद्ध गुरु अपने मित्र दिनकर को युवा पुत्र बनाकर राजा के पास आया और अपनी कन्या को मांगा। श्राप के डर के मारे राजा ने कहा कि वह कन्या तो जाने कहां चले गई। आप मेरी कन्या से इसका विवाह कर दो।
वह राजी हो गया और राजकुमारी का विवाह दिनकर के साथ कर दिया गया। 

घर आने के पश्चात कन्या रूप धारी ब्राह्मण युवक ने कहा यह राजकुमारी मेरी पत्नी है मैंने इससे गंधर्व रीति से विवाह किया है। दिनकर ने कहा यह मेरी पत्नी है क्योंकि मैंने सबके सामने विधि विधि पूर्वक विवाह किया है।

इतनी कहानी सुना कर बेताल बोला - राजन यह बताओ शशिप्रभा दोनों में से किसकी पत्नी हुई?

राजा ने कहा - शशिप्रभा दिनकर की पत्नी है क्योंकि राजा ने सबके सामने विधि पूर्वक शशिप्रभा का विवाह दिनकर से किया है। ब्राह्मण कुमार ने चोरी से विवाह किया था और चोरी की चीज पर चोर का अधिकार नहीं होता। साथ ही उसने अपने विलासिता के कारण शशिप्रभा और मृगांकदत्ता दोनों के साथ ही छल किया है।

राजा का जवाब सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला राजन तुम न्याय और बुद्धिमान राजा हो
लेकिन तुमने नही बोलने की शर्त भूल गए।

इतना कहकर बेताल वापस पेड़ पर जाकर लटक गया। राजा विक्रम बेताल को वापस पेट से उतारकर नगर को चलते है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 16

विक्रम बेताल की कहानी भाग 16

सबसे बड़ा कार्य किसने किया? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 16

हिमाचल पर्वत पर गंधर्व नगर था। जहां जीमूतकेतु राजा शासन करता था। राजा के जीमूतवाहन नामक लड़का था दोनों ही पिता पुत्र बहुत ही भले और धर्म-कर्म में लगे रहते थे। इसे प्रजा स्वच्छंद हो गई और एक रोज उन्हें राजा के महल को घेर लिया। 

राजकुमार ने देखा तो राजा से कहा पिताश्री आप चिंता नहीं करें। मैं सबको मार के भगा दूंगा। राजा ने बोला नहीं पुत्र ऐसा नहीं करो, युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताए थे। 

इसके बाद राजा ने अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप कर पुत्र के साथ मलयानचल पर्वत पर जाकर कुटिया बनाकर रहने लगे। वहां जीमूतवाहन की मित्रता ऋषि के एक पुत्र से हो गई। 

एक दिन दोनों पर्वत पर देवी माता के मंदिर में गए जहां उन्हें देवयोग से मलयकेतु राजा की पुत्री मिली। दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए। जब मलयकेतु को पता चला तो उन्होंने जीमूतवाहन से अपने पुत्री की शादी कर दी। 

एक दिन जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफेद ढेर दिखाई दिया। जब उसने पूछा तो पता चला कि पाताल लोगों से बहुत नाग आते हैं जिनको गरुड़ खा जाता है और यह उन मृत नागों की हड्डियां का ढेर है। 

जिसे देखकर जीमूत वाहन आगे बढ़ जाता है। कुछ दूर जाने की पहचान को किसी की रोने की आवाज सुनाई देती है। जब वह पास जाता है तो वहां एक बुढ़िया मां रो रही थी। जीमूतवाहन के कारण पूछने पर माता ने बताया कि उसके पुत्र शंखचूड की आज बलि चढ़ेगी अर्थात आज वह गरुड़ उसके पुत्र को खाएगा।

जीमूतवाहन ने कहा माता आप चिंता ना करो। मैं आपके पत्र की जगह जाऊंगा। बुढ़िया मां ने समझाया लेकिन वह नहीं माना। 

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

इसके पश्चात गरुड़ आया और जीमूतवाहन को अपनी चोच में पकड़ कर ले गया। 

संयोग से राजकुमार का बाजूबंद वहीं पर गिर जाता है। जिस पर राजा का नाम लिखा हुआ था। उस पर खून लगा देखकर राजकुमारी मूर्छित हो गई। होश आने के पश्चात जब राजा रानी को सब पता चला तो वह बहुत दुखी हुए और जीमूतवाहन को खोजने निकल गए। 

तभी उन्हें शंखचूड़ नाग मिला जो गरुड़ को पुकार रहा था - हे गरुड़ तू इस इंसान को छोड़ दे और मुझे अपना भोजन बना ले। 

गरुड़ ने यह राजकुमार से पूछता है - तुम कौन हो और अपनी जान क्यों दे रहे हो? 

जीमूतवाहन ने कहा उत्तम पुरुष वही है जो हमेशा दूसरों की सहायता करता है। 

यह सुनकर करोड़ प्रसन्न हुआ और राजकुमार से कहा - मैं तुम्हें वरदान देता हूं जो तुम्हें चाहिए मांग लो। 

जीमूतवाहन ने प्रार्थना की - वह सभी नागों को वापस जिंदा कर दें और उन्हें अपना राज्य भी वापस दिलवा दे।

गरुड़ ने सभी नागों को जिंदा कर दिया और फिर कहा कि तुम्हें तुम्हारा राज्य भी मिल जाएगा। 

इसके बाद भी अपने नगर लौट आए। लोगों ने राजा जीमुतकेतु को वापस से राजगद्दी पर बैठा दिया। 

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - हे राजन बताओ इसमें सबसे बड़ा कार्य किसने किया? 

राजा ने कहा - शंखचूड ने।

बेताल ने पूछा - कैसे? 

राजा विक्रम ने कहा -जीमूतवाहन क्षत्रिय जाति का था इसलिए उसे प्राण देने का अनुभव था लेकिन शंखचूड ने बिना प्राण देने के अभ्यास के होते हुए भी उसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए जीमूत वाहन को बचाने के लिए अपने प्राण देने को तैयार हो गया। 

इतना सुनते ही बेताल बहुत खुश हुआ और राजा से बोला - राजन तुम बहुत बुद्धिमान और धर्मात्मा हो लेकिन तुमने अपनी नहीं बोलने की शर्त को भुला दिया। राजन अब मैं चला और बेताल वापस से पेड़ भर जाकर लटक जाता है। राजा विक्रम बेताल के पीछे पीछे जाकर उसको वापस से पकड़ कर मरघट को चलते है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 17

विक्रम बेताल की कहानी भाग 17

राजा और सेनापति में हिम्मतवाला कौन ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 17

एक बार की बात है कनकपुर नाम का एक शहर था जिसके राजा का नाम यशोधन था। वह राजा अपनी प्रजा का खूब ख्याल रखा था। उसी शहर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ भी था जिसकी बेटी का नाम उन्मादनी नहीं था।

वह बहुत ही सुंदर और गुणवती थी। जो भी उसको देखता, देखते ही रह जाता था। जब सेठ की बेटी बड़ी हुई तो उसने उसकी शादी करने का फैसला लिया।

सेठ सबसे पहले राजा के पास अपनी बेटी का शादी का प्रस्ताव लेकर गया।

सेठ ने राजा के पास जाकर कहा - महाराज मैं अपनी बेटी की शादी के बारे में सोच रहा हूं। वह बहुत सुंदर और विद्वान है। आप यहां के महाराज है सबसे ज्यादा साहसी, गुणी और विद्वान। आपसे अच्छा मेरी बेटी के लिए कोई हो ही नहीं सकता।

ऐसे में सबसे पहले मैं आपको निवेदन करना चाहता हु को आप मेरी बेटी को पत्नी के रूप में अपनाएं और अगर आपको मंजूर नहीं तो आप इनकार कर दे।

यह सुनकर राजा ने उन्मादनी को देखने के लिए ब्राह्मणों को भेजा। राजा की बात मानकर ब्राह्मण उन्मादनी को देखने गए। ब्राह्मण उन्मादनी को देखकर काफी खुश हुए लेकिन दूसरे ही पल उनको इस बात की चिंता हुई कि राजा ने इतनी खूबसूरत लड़की से शादी की तो पूरा दिन उन्हें देखते ही रहेंगे और प्रजा पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। इसलिए ब्राह्मणों ने फैसला किया कि वह उन उन्मादनी के रूप और गुणों के बारे में राजा को कुछ नहीं बताएंगे।

सारे ब्राह्मण राजा के पास पहुंचे और बोले कि राजा वह अच्छी लड़की नहीं है। इसलिए आप उनसे शादी ना करें। ब्राह्मणों की बात सुनकर राजा को लगा कि ये सब सच बोल रहे है। राजा ने उन्मादनी से शादी करने के लिए मना कर दिया।

फिर सेठ ने राजा की अनुमति से अपनी बेटी की शादी राजा के सेनापति बालधार के साथ की करा दी। उन्मादनी शादी के बाद खुशी से रहने लगी। लेकिन कभी-कभी उसके मन में यह बात जरूर आती कि राजा ने उसे बुरी औरत समझकर उसस शादी करने से मना कर दिया था।

एक बार बसंत के मौसम में राजा बसंत का मेला देखने निकले। राजा के सैर की खबर उन्मादनी को भी मिली। वह देखना चाहती थी कि वह कौन राजा था जिसने उसके साथ शादी नहीं की।

यह सोचकर उन्मादनी अपने घर की छत पर राजा को देखने के लिए खड़ी हो गई। राजा अपनी पूरी सेना के साथ उधर से जा ही रहे थे कि उनकी नजर छत पर खड़ी उन्मादनी पर पड़ी। उसे देखकर राजा पूरी तरह से आकर्षित हो गए।

उन्होंने अपनी सहयोगी से पूछा यह खूबसूरत लड़की कौन है?

सेवक ने राजा को पूरी कहानी बताई। यह वही लड़की है जिसके साथ जिसके साथ राजा आपने शादी करने से मना कर दिया था। जिसके बाद में इसकी शादी सेनापति बलधार के साथ हो गई थी।

पूरी कहानी सुनने के बाद राजा को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने ब्राह्मणों को नगर छोड़ने की सजा दे दी। उसके बाद राजा बार बार यह बात सोच कर दुखी रहने लगा।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

उसे बार-बार शर्म भी आ रही थी कि वह एक ऐसी लड़की के बारे में सोच रहा था जो पहले से ही शादीशुदा है। राजा के हाव भाव से आसपास के लोग उनके मन की बात समझने लगे।

राज्य के मंत्री और चाहने वालों ने राजा से कहा राजा इसमें दुखी होने वाली क्या बात है राजन। सेनापति तो आपके लिए ही काम करता है। आप उनसे बात कर उसकी पत्नी को अपना ले।

लेकिन राजा ने मंत्रियों की बात नहीं मानी। राजा का सेनापति बलधर जिससे उन्मादनी की शादी हुई थी वो राजा का भक्त था। उसे जब राजा की बात पता चली तो वह राजा के पास पहुंचा और बोला राजा मैं आपका दास हूं और वह आपकी दासी की ही पत्नी है। मैं खुद उसको आपको भेंट देता हूं आप उसे अपना ले या मैं उसे मंदिर में छोड़ देता हूं तो वह देवकुल की स्त्री हो जाएगी तो आप उसे अपना सकते है।

राजा को सेनापति की बात सुनकर बहुत गुस्सा आया।

राजा ने कहा - राजा होकर मैं ही ऐसा बुरा काम करूंगा कभी नहीं।

तुम मेरे भक्तों होकर मुझे ऐसा काम करने को कह रहे हो अगर तुम अपनी पत्नी को नहीं अपनाओगे तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा।

राजा मन ही मन उन्मादनी के बारे में सोचते सोचते मर गया। सेनापति राजा की मौत से बहुत दुखी हुआ और इस बात को सह नहीं पाया। उसने अपने गुरु को सब बात बताएं तब उसके गुरु ने कहा सेनापति का धर्म होता है कि वह अपने राजा के लिए अपनी जान दे दे।

यह बात सुनकर सेनापति ने राजा के लिए बनाई गई चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। जब यह बात सेनापति की पत्नी उन्मादनी को पता चली तो उसने भी अपनी पति के लिए अपने प्राण त्याग दिए।

इतना बताने के बाद बेताल ने राजा विक्रमादित्य से सवाल पूछा बताओ राजा राजा और सेनापति में सबसे ज्यादा हिम्मत वाला कौन था?

विक्रमादित्य बोले - राजा सबसे अधिक साहसी था क्योंकि उसने राजधर्म निभाया। उसने पति को नहीं अपनाया और खुद मर जाना ही सही समझा। सेनापति एक अच्छा सेवक था अपने राजा के लिए उसने अपनी जान दे दे इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी। असल हिम्मतवाला तो राजा था जिसने अपने धर्म और काम को अनदेखा नहीं किया।

राजा का जवाब सुनकर बेताल बेहद खुश हुआ और बोला राजन तू ने मुंह खोला अब मैं चला।

इस कहानी से सीख मिलती है कि जो व्यक्ति अपने परिवार के बारे में पहले सोचे वही असली हिम्मतवाला होता है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 18

विक्रम बेताल कहानी भाग 18

विद्या क्यों नष्ट हुई ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 18

उज्जैन नगरी का राजा महासेन था। राज्य में वासुदेव नामक ब्राह्मण भी रहता था। जिसके गुणाकर नामक पुत्र था। गुणाकर बड़ा ही ज्वारी था जिसन अपने पिता द्वारा अर्जित सारा धन जुए में हार गया। जिसके पश्चात ब्राह्मण ने उसको घर से निकाल दिया। 

जब गुणाकर दूसरे नगर में पहुंचा तो वहां उसे योगी मिला। योगी ने गुणाकर को हैरान देखा तो कारण पूछा। जिसके पश्चात गुणाकर ने सब बता दिया। योगी ने कहा पहले कुछ खा लो। जिसके बाद गुणाकर ने कहा मैं ब्राह्मण पुत्र हूं मैं आपकी भिक्षा नहीं खा सकता। 

इतना सुनकर योगी ने सिद्धि याद किया और वह आई। योगी ने उसको आवभगत करने को कहा। सिद्धि ने एक सोने का महल बनवाया और गुणाकर उसमें रात को अच्छी तरह से रहा। 

सवेरे उठते ही उसने देखा कि वहां महल कुछ भी नहीं है। उसने योगी से कहा - महाराज मैं उस स्त्री के बिना नहीं रह सकता। योगी ने कहा वह तुम्हें एक विद्या प्राप्त करने के पश्चात मिलेगी और विद्या जल के अंदर खड़े होकर मंत्र जाप करने से अर्जित होगी लेकिन जब वह लड़की तुम्हें मेरी सिद्धि से मिल सकती है तो तुम विद्या अर्जित करके क्या करोगे। 

लेकिन गुणाकर ने कहा नहीं मैं खुद विद्या प्राप्त करूंगा। योगी ने बोला कहीं ऐसा न हो कि तुम विद्या अर्जित न कर पाओ और मेरी सिद्धि भी खत्म हो जाए। लेकिन यह गुणाकर नहीं माना। 

योगी गुणाकर को एक नदी किनारे ले जाकर मंत्र बता देता है और कहता है कि जब तुम जप करते हुए माया से मोहित होगे तो मैं तुम पर अपनी विद्या का प्रयोग करूंगा। उस समय तुम अग्नि में प्रवेश कर जाना। 

गुणाकर मंत्र जाप करने लगा और जब वह माया से एकदम मोहित हो गया तो देखता है कि वह किसी ब्राह्मण के रूप के बेटे के रूप में पैदा हुआ है उसका विवाह हो गया है और बाल बच्चे भी हो गए हैं लेकिन वह अपने जन्म की बात भूल गया। 

तभी योगी ने अपनी विद्या का प्रयोग किया गुणाकर माया रहित होकर अग्नि में प्रवेश करने को तैयार हुआ हो गया। उसी समय उसने देखा है कि उसे मरता देख कर उसके मां-बाप रोने लगे और उसे आग में जाने से रोक रहे है। गुणाकर ने सोचा कि मेरे मरने पर यह सब भी मर जाएंगे और पता नहीं जो भी बात सत्य हो या नहीं हो। इस तरह सोचता हुआ वो आग में घुसा तो आग ठंडी हो गई और माया भी शांत हो गई।

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

गुणाकर चकित हो गया और योगी पास आकर उसे सारी घटना बताई। योगी ने कहा मालूम होता है कि तुम्हारे विद्या अर्जित करने के प्रयास में कोई कसर रह गई। 

योगी ने श्रम से अर्जित की सिद्धि याद की लेकिन वह भी नहीं आई। इस तरह है योगी और गुणाकर दोनों की विद्या नष्ट हो जाती है। 

इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने राजा विक्रम से पूछा राजन बताओ दोनों की विद्या क्यों नष्ट हुई? 

राजा विक्रम बोले - इसका जवाब बिल्कुल सरल है। निर्मल और शुद्ध संकल्प करने से ही विद्या प्राप्त होती है।  गुणाकर के मन में शंका उत्पन्न हुई कि पता नहीं योगी की बात सत्य होगी या नहीं। योगी की विद्या इसलिए नष्ट हुई कि उसने अपात्र व्यक्ति को अपनी विद्या दी। 

राजा का उत्तर सुनकर बेताल खुश हुआ और बोला राजन तुमने अपने बोलने की शर्त भुला दी। अब मैं चला और बेताल वापस से पीपल के पेड़ पर जाकर लटक जाता है। इसके पश्चात राजा विक्रम बेताल के पीछे पीछे जाकर उसको पेड़ से नीचे उतारकर निकल पड़ते है। और रास्ते में बेताल दोबारा से राजा विक्रम को अपनी चालाकी में उलझा कर एक नई कहानी सुनाता है।

तो आज की Vikram Betal Ki Kahani में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ सुनते रहिए Rahasyo Ki Duniya पर विक्रम बेताल की कहानियां








आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 19

विक्रम बेताल की कहानी भाग 19

पिंडदान का अधिकारी कौन ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 19

व्रकोलक नगर का राजा सूर्यप्रभा, जिसके कोई संतान नहीं थी। उसी समय दूसरी नगरी में धनपाल साहूकार भी रहता था। जिसकी पत्नी का नाम हिरणवती था। साहूकार को एक धनवती नामक पुत्री भी थी। जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल की मृत्यु हो गई और रिश्तेदार उसका सारा धन ले गए। 

हिरणवती ने अपनी पुत्री के साथ रात के समय नगर को छोड़कर निकल जाते है। रास्ते में उनको एक सूली पर चोर लटका हुआ मिला। वह मरा नहीं था लेकिन उसने हिरणवती को देख कर अपना परिचय दिया और कहा मैं तुम्हें एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। तुम अपनी पुत्री का विवाह मेरे साथ कर दो। 

हिरणवती ने कहा तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। चोर बोला मेरा कोई पुत्र नहीं है और बिना पुत्र के मेरी सद्गति नहीं होगी। यदि मेरी आज्ञा से और किसी से भी इसके पुत्र हो जाएगा तो मुझे मेरी सद्गति हो जाएगी। 

हिरणवती ने लालच में आकर उसकी बात मान ली और धनवती का विवाह उसके साथ कर दिया। चोर ने कहा इस बरगद के पेड़ के नीचे हजार स्वर्ण मुद्राएं गढ़ है। उनको ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा अंतिम संस्कार करके तुम अपने नगर वापस चली जाना। 

इतना कहकर चोर मर जाता है हिरणवती ने जब जमीन खोदी तो वहां सोने की मोहरें निकली। जिसके पश्चात उन्होंने चोर का अंतिम संस्कार किया और अपने नगर वापस लौट आए। 

उसी नगर में वसुदत्त नामक का एक गुरु था जिसके मनस्वामी शिष्य था। वह शिष्य एक नगरवधू से प्रेम करता था। वैश्या उससे पांच सौ अशर्फियां मांगती थी वह कहां से लेकर आता। सयोंग से धनवती ने मनस्वामी को देखा और वह उस से प्रेम करने लगी। 

उसने अपनी दासी को उसके पास भेजा तो मनस्वामी कहता है मुझे पांच सौ अशर्फियां मिल जाए तो मैं एक रात धनवती के साथ रह सकता हूं। हिरणवती राजी हो गई। उसने स्वामी को पाँच सौ अशरफिया दी। बाद में धनवाती को पुत्र हुआ। 

उसी रात शिवजी ने उन्हें सपने मैं दर्शन देकर कहा तुम इस बालक को हजार स्वर्ण मुंद्राओं के साथ राज महल के दरवाजे पर रख आओ। जिसके पश्चात धनवती ने ऐसा ही किया। उधर शिव जी ने राजा के सपने में दर्शन देकर कहा तुम्हारे दरवाजे पर किसी ने धन के साथ एक लड़का रखा है तुम उसे ग्रहण करो। 

राजा ने अपने नौकरों को भेजा और बालक और राशियों को मंगवा लिया। बालक का नाम राजा ने चंद्रप्रभ रखा। जब वह लड़का बड़ा हुआ तो राजा चंद्रप्रभ को राज्य का संचालन सौंप पर काशी चला गया और कुछ दिनों के पश्चात मर गया। पिता के ऋण से उऋण होने के लिए चंद्रप्रभ तीर्थ यात्रा करने निकला। जब घूमते घूमते गयाकूप पहुंचा और पिंडदान किया तो उसमें से तीन हाथ एक साथ निकले तो हैरान चंद्रप्रभ ने ब्राह्मणों से पूछा कि मैं किसको पिंडदान करूं? 

उन्होंने कहा लोहे की कील वाला चोर का है, पवित्र ब्राह्मण का है और अंगूठी वाला राजा का। अब आप तय करो कि किसको देना है? 

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - राजन तुम बताओ कि किसको पिंड दान देना चाहिए?

राजा ने कहा- चोर को। क्योंकि वह उसी का पुत्र है मनस्वामी इसलिए नहीं हो सकता कि वह एक रात के लिए पैसे से खरीदा हुआ था। राजा भी उसका नहीं पिता नहीं है क्योंकि उसको बालक को पालने के लिए धन मिल गया था। इसलिए चोर ही पिंडदान का अधिकारी है। 

राजा का जवाब सुनकर बेताल खुश हुआ और हंसते हुए बोला राजन तुमने मुंह खोला अब मैं चला और वापस पेड़ पर जाकर लटक गया। इसके पश्चात राजा विक्रम बेताल को पेड़ से नीचे उतारकर नगर को चलते है। रास्ते में फिर से बेताल राजा विक्रम को एक नई कहानी सुनाता है।

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विक्रम बेताल की कहानी भाग 20

आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 20

विक्रम बेताल की कहानी भाग 20

मरते समय बालक क्यों हंसा ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 20

चित्रकूट नगर का राजा एक दिन शिकार खेलने जंगल में जाए गया। जंगल में घूमते घूमते राजा अकेला रह गया और रास्ता भूल गया। थक हार कर राजा एक पेड़ की छांव में बैठा जहां उसे एक ऋषि कन्या दिखाई दी। राजा ऋषि कन्या को देखकर उस पर मोहित हो गया। थोड़ी देर में ऋषि भी वहां आ गए। 

ऋषि ने पूछा - तुम यहां कैसे आए? 

राजा ने कहा - मैं यहां शिकार खेलने आया था। 

ऋषि बोले - बेटा तुम क्यों जीव को मार कर पाप अर्जित करते हो।

राजा ने ऋषि से वादा किया कि मैं आज के बाद कभी भी शिकार नहीं खेलूंगा। इससे खुश होकर ऋषि ने राजा को वरदान दिया कि जो तुम चाहो मांग लो। राजा ने ऋषि से उनकी कन्या का हाथ मांगा। ऋषि ने खुश होकर दोनों का विवाह कर दिया। 

जब राजा अपनी पत्नी को लेकर नगर आ रहा था तब रास्ते में एक भयानक राक्षस मिला। राक्षस ने रानी को पकड़ लिया और कहा - मैं तुम्हारी रानी को खा जाऊंगा। यदि तुम अपनी रानी की जान बचाना चाहते हो तो सात दिन के अंदर एक ऐसे ब्राह्मण पुत्र का बलिदान करो जो अपनी इच्छा से अपने प्राण देना चाहता हूं और मरते समय उसे मारते समय उसके माता-पिता उसके हाथ पैर पकड़े। 

डर के मारे राजा राक्षस की बात मान लेता है और नगर लौटकर अपने दीवान को सारी घटना बताता है। दीवान ने कहा महाराज आप परेशान ना हो मैं उपाय करता हूं। इसके पश्चात दीवाने सात साल के बालक की स्वर्ण से मूर्ति बनवाई और उसको कीमती गहने पहनाकर नगर नगर घुमाया और यह मुनादी करवा दी कि जो भी सात बरस का ब्राह्मण पुत्र अपना बलिदान देगा और बलिदान के समय उसके माता-पिता उसके हाथ-पैर पकड़ेंगे तो यह मूर्ति और सौ गांव उसको दान में दिए जाएंगे। 

यह खबर सुनकर एक ब्राह्मण का पुत्र राजी हो जाता है। वह अपने माता-पिता से कहता है - पिताजी आपको मेरे जैसे सौnपुत्र मिल जाएंगे मेरे शरीर से राजा की भलाई होगी और हमारी गरीबी भी मिट जाएगी। उसके माता पिता मना करते हैं लेकिन बालक अपनी जिद पर अड़ा रहा और उन्हें राजी कर लेता है। 

बालक अपने माता पिता को लेकर राजा के पास जाता है और राजा उस बालक को लेकर राक्षस के पास गया। राक्षस के सामने जब माता पिता ने उसके हाथ पैर पकड़े और राजा तलवार से मारने को हुआ तब बालक जोर से हंसा।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - बताओ राजन वह बालक क्यों हंसा? 

राजा विक्रम बोले - वह इसलिए हंसा कि जब बालक संकट में होता है तब वह माता पिता को पुकारता है और जब माता-पिता से मदद नहीं हो पाती तो वह राजा के पास जाता है। लेकिन यहां तो माता-पिता और राजा दोनों ही उसकी बलि दे रहे थे। मां बाप उसके हाथ पकड़े हाथ पैर पकड़े हुए थे और राजा तलवार लिए खड़ा था और राक्षस उसका भक्षक बन रहा था ब्राह्मण का लड़का परोपकार के लिए अपना बलिदान दे रहा था और इसी हर्ष से वह हंसा। 

राजा विक्रम की बात सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला राजन तुमने अपनी न बोलने की शर्त तोड़ दी अब मैं चला और बेताल वापस पेड़ पर जाकर लटक जाता है। राजा विक्रम बेताल को फिर से पेड़ से नीचे उतारकर लेकर आगे चलते है।

रास्ते में चालक बेताल राजा को अपनी बातों में उलझाकर फिर से एक नई कहानी सुनाता है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 21

विक्रम बेताल की कहानी भाग 21

प्रेम में अंधा कौन ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 21

विशाला नगरी में पद्मनाभ राजा का शासन था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का साहूकार भी रहता था। अर्थदत्त के अनंगमंजरी नामक एक सुंदर पुत्री थी। जिसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा से किया था। मणिवर्मा अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करता था लेकिन पत्नी उसको प्यार नहीं करती थी। 

एक बार मणिवर्मा कहीं गया हुआ था। पीछे से अनंगमंजरी ने राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर निगाहें पड़ी तो वह उसे चाहने लगी। पुरोहित का लड़का भी अनंगमंजरी को चाहने लगा। 

अनंगमंजरी महल के बाग में जाकर चंडी देवी को प्रणाम कर कहती हैं यदि इस जन्म में मुझे कमलाकर पति के रूप में न मिला तो अगले जन्म में जरूर मिले। यह कहकर वह अशोक के पेड़ से अपने दुपट्टे की फांसी बनाकर आत्महत्या करने लगती है तभी उसकी सखी वहां आ गई। और उसे यह वचन देकर ले गई कि वह उसको कमलाकर से जरूर मिलेगी। 

दासी सवेरे कमलाकर के यहां गई और दोनों की बाग में मिलने का प्रबंध कर के आई। समय पर बाग में कमलाकर आया और उसने आनंद मंजरी को देखा। खुशी के मारे अनंगमंजरी के ह्रदय की गति रुक गई और वह मर गई। उसे मरा हुआ देखकर कमलाकर का दिल भी फट गया और उसकी भी मृत्यु हो गई। 

उसी समय मणिवर्मा वहां जाता है और अपनी पत्नी को पराई पर पुरुष के साथ मरा हुआ देखकर बहुत दुखी होता है। वह अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करता था और उसके योग से उसके भी प्राण निकल गए। चारों तरफ हाहाकार मच गया चंडी देवी प्रसन्न होती हैं और सब को जीवित कर देती है। 

इतनी कहानी सुनकर बेताल बोला - बताओ राजन तीनों में सबसे ज्यादा प्रेम में अंधा कौन था? 

राजा ने कहा - मेरे विचार में मणिवर्मा के अपनी पत्नी को पर पुरुष के से प्यार करते देख कर ही शौक से क्योंकि उसके पर पुरुष को अपनी पत्नी को प्यार करते हुए देखकर ही उसके प्राण निकल गए। मंजरी और कमला कर दो अचानक मिलने की खुशी से मरे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 

राजा का जवाब सुनकर बेताल खुश हुआ और बोला राजन तूने अपना मुंह खोला और अब मैं चला। राजा विक्रम बेताल के पीछे भी जाकर उसको पेड़ से नीचे उतारकर लेकर वापस नगर को चलते है। रास्ते में बेताल फिर से राजा को एक नई कहानी सुनाता है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 22

विक्रम बेताल की कहानी भाग 22

पढ़े लिखे मूर्ख ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 22

कुसुमपुर नगर में राजा शासन करता था। जहां एक ब्राह्मण अपने चार बेटों के साथ रहता था। लड़कों के बड़े होने पर ब्राह्मण मर गया और ब्राह्मणी उसके साथ सती हो जाती है। 

उनके रिश्तेदारों ने ब्राह्मण का सारा अर्जित धन छीन लिया और चारों भाई अपने नाना के यहां चले गए। लेकिन कुछ दिनों बाद उनके साथ वहां भी बुरा व्यवहार होने लगा। 

तब सब ने मिलकर एक ही सोचा कि उनको कोई विद्या  सीखनी चाहिए। यह सोचकर चारों चार दिशाओं में चल दिए। कुछ समय बाद चारों विद्या सीखकर एक स्थान पर मिले। 

एक ने कहा - मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूं। 

दूसरे ने कहा - मैं उसके बाल और खाल पैदा कर सकता हूं। 

तीसरे ब्राह्मण पुत्र ने कहा - मैं उसके सारे अंग बना सकता हूं।

और चौथा ब्राह्मण पुत्र बोला - मैं उस में जान डाल सकता हूं। 

फिर सभी अपनी परीक्षा विद्या की परीक्षा लेने के लिए जंगल गया। वहां उन्हें एक मरे हुए शेर की हड्डियां दिखाई दी। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया और एकत्र करके एक जगह एकत्र कर ले। 

पहले पुत्र ने अपनी विद्या से उन्हें पर मांस चढ़ा दिया। दूसरे ब्राह्मण पुत्र ने उस पर खाल और बाल पैदा कर दिए। तीसरे ब्राह्मण पुत्र ने उसके सारे अंग बनाएं और चौथा चौथे ब्राह्मण पुत्र ने उसमें प्राण डाल दिए। इसके पश्चात शेर जीवित हो उठा। शेर भूखा था उन चारों ब्राह्मण पुत्रों को मारकर खा गया।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - राजन बताओ उन चारों में शेर को जीवित करने का अपराध किसने किया? 

राजा ने कहा - जिसने प्राण डालें क्योंकि बाकी बाकी तीनों को तो यह पता नहीं था कि वह शेर बना रहे है इसलिए उनका कोई दोष नहीं।

राजा का जवाब सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला राजन तुमने मार्ग में न बोलने की अपनी शर्त तोड़ दी। इसके पश्चात बेताल वापस पेड़ पर जा लटका। राजा विक्रम बेताल के पीछे पीछे जाकर उसको पकड़ कर लाते है। बेताल राजा विक्रम को रास्ते में फिर से एक नई कहानी सुनाता है।

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आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 23

विक्रम बेताल की कहानी भाग 23

साधु पहले क्यों रोया और फिर क्यों हंसा ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 23

कलिंग देश में शोभावती नामक नगर था। जहां प्रद्युमन राजा शासन करता था। उसी नगरी में ब्राह्मण अपने देवसोम नामक पुत्र के साथ रहता था। 

जब देवसोम सोलह बरस का हुआ तो उसने अपनी सारी विद्या सीख ली और अचानक से एक दिन दुर्भाग्यवश उसकी मृत्यु हो गई। बूढ़े मां बाप बहुत दुखी हुए। चारों तरफ शोक छा गया जब लोग उसको लेकर शमशान पहुंचे तो रोने पीटने की आवाज सुनकर एक योगी साधु अपनी कुटिया में से निकल कर आया। 

पहले तो वह खूब जोर से रोया और फिर खूब हंसा। इसके पश्चात अपने योग बल से अपना शरीर छोड़कर ब्राह्मण पुत्र की शरीर में चला गया। ब्राह्मण लड़का खड़ा हो गया। उसको जीता देखकर सब बड़े खुश हुए है और वह लड़का वही तपस्या करने लगा। 

इतनी कहानी सुनाकर बेताल बोला - राजन बताओ वह साधु पहले क्यों रोया और फिर क्यों हंसा? 

जिसके पश्चात राजा विक्रम ने कहा - वह पहले इसलिए रोया कि जिस शरीर को उसके मां बाप ने पाला-पोसा और जिसने जिससे उसे बहुत सारी शिक्षा ही प्राप्त की वह उसे छोड़ रहा था। और हंसा इसलिए कि वह नए शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियां प्राप्त करेगा। 

राजा का जवाब सुनकर बेताल बहुत खुश हुआ और बोला राजन तुम ने अपना मुंह खोला और अब मैं चला। बेताल वापस पेड़ पर जाकर लटक जाता है और राजा विक्रम और बेताल के पीछे जाकर उसको पेड़ से नीचे उतार कर लाते है रास्ते में बेताल पुणे राजा विक्रम को एक नई कहानी सुनाता है।

तो आज की Vikram Betal Ki Kahani में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ सुनते रहिए Rahasyo Ki Duniya पर विक्रम बेताल की कहानियां










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