Real Horror Story In Hindi | बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल | चुड़ैल की कहानी

चुड़ैल वाली कहानी सच्ची घटना | बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल

रहस्य की दुनिया पर आपको भूतिया कहानियां पढ़ने को मिलती है। यहां पर हम आपके लिए नई नई भूतिया कहानियां, भूतों की कहानियांचुड़ैल की कहानी , चुड़ैल वाली कहानी आदि ही नियमित रूप से लाते रहते है।

आज आपको चुड़ैल वाली कहानी की सच्ची घटना के बारे में बताने वाले है। चुड़ैल का नाम सुनते ही लोग के दिल दिमाग में भयानक डरावनी शक्ल वाली भूतनी का चेहरा सामने आ जाता है। 

तो चलिए शुरू करते हैं चुड़ैल की कहानी

बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल

बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल | चुड़ैल की कहानी

मुझे बचपन से ही भूतों से बहुत डर लगता था। लोग अक्सर सांप बिच्छू शेर चीता भाग जैसे खूंखार जानवरों से डरते है, लेकिन मुझे इन खतरनाक जानवरों की बजाए भूतों और चुड़ैलों से डर लगता था। 
भूतों और चुड़ैलों से डर लगने के कारण यह भी था कि भूतों और चुड़ैलों के सामने तो यह खूंखार जानवर भी नहीं टिक सकते।

जब यह खूंखार जानवर आप किसी पर हमला करते हैं तो उसे पता चल जाता है कि हमला किसने और कहां से किया है लेकिन भूत और चुड़ैल तो आपको बिना देखे ही आप की जान ले सकते है। आपका नामोनिशान मिटा सकते है।

हमारे गांव में हमारे गांव में भूतों की कहानियां की कोई कमी नहीं थी। लोग अक्सर भूतों की कहानियां, भूतों के अनुभव, चुड़ैलों की कहानियां कहते मिल जाते थे।

नहर के पास वाला भूत जो बारिश में 12 मवेशियों को नहर में डूबा कर अपना भोजन नहीं कर लेता था तब तक वह नही मानता था।

सड़क वाला भूत, जो लोगों को सड़क दुर्घटना में मार देता था। कुएं वाला भूत, जो कुए के नजदीक वाली जमीन के मंजर होने का कारण था

सबसे खतरनाक, रहस्यमई और डरावनी थी सूखे बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल। गांव में रिवाज था कि ऊपर लिखी सभी जगहों पर दीपावली को दिए जलाएं जाते थे। माना जाता था कि दिए जलाने से भूत चुड़ैल शांत रहते थे।

लेकिन दीपावली में भी सूखे बरगद के पेड़ पर अंधेरा ही रहता था। कहा जाता है कि पुराने जमाने में कई लोगों ने वहां दिया जलाने की कोशिश की, लेकिन किसी कोई भी कामयाब नहीं हो पाया और कोई भी दिया वहां टिक नहीं पाया।

सूखे बरगद के पेड़ के पास कोई भी नहीं जाता था फिर चाहे वह बड़े बुजुर्ग हो, बच्चे हो, कोई भी नहीं।

सूखे बरगद के पेड़ पर के पास सिर्फ गर्भवती महिलाएं ही जा सकती थी। जो वहां चुड़ैल का आशीर्वाद लेने जाती थी।

डरावनी स्थानों के बारे में कई प्रकार की भूतिया कहानियां चुड़ैलों की कहानियां और हजारों दंत कथाएं बना लेते हैं वैसे ही सूखे बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल के बारे में कई दंत कथाएं कही जाती थी की बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल कैसे आई कहां से आई कब आई।

बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल के बारे में भी बहुत चुड़ैल की कहानी मशहूर थी। लेकिन आज जो मैं चुड़ैल की कहानी बता रहा हूं। वह मुझे मेरी दादी ने सुनाई थी और मैं इसी चुड़ैल की कहानी को सच मानता हूं।

पहले जब दादी का जन्म भी नहीं हुआ था तब की बात है हमारे गांव में एक पहलवान था जो अपनी कुश्ती के लिए बहुत प्रसिद्ध था।

पहलवान का नाम बेचनदास था। पहलवान का नाम बेचन कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।

पुराने जमाने में हमारे गांव के पास वाले गांव में प्रचंड वीर नाम का पहलवान बहुत मशहूर था। और आसपास के 10–15 गांव में सिर्फ वह अकेला विजेता था। कोई भी उसको हरा नहीं पाता था। कहते हैं कि एक बार प्रचंड वीर पहलवान ने अपने एक मुक्के से भैंस को मार दिया था।

बेचन भी बलिष्ठ शाली और बहुत बलवान था लेकिन उसे पहलवानी में कोई रुचि नहीं थी।

एक दिन बेचन और प्रचंड वीर में बहस छिड़ गई प्रचंड वीर को पहलवानी का बहुत घमंड था और वह बेचन से हाथापाई करने लगा लेकिन पहलवानी के विपरीत बेचन ने उल्टा प्रचंड वीर को ही पीट दिया।

आस पास के गांव में प्रचंड वीर और बेचन की चर्चा होने लगी। लोग कहने लगे कि अब प्रचंड वीर में पहले जितना दम नहीं रहा। प्रचंड वीर अपनी खोई हुई मान और प्रतिष्ठा वापस पाने के लिए बेचन को पहलवानी कुश्ती की चुनौती दे दी।

उस जमाने में बरगद का पेड़ बहुत हरा भरा था और बरगद के पेड़ के नीचे ही दंगल प्रचंड वीर और बेचन की कुश्ती का दंगल लगा था। लोग दूर-दूर से कुश्ती देखने के लिए आए थे।

लोग बताते हैं कि उस दिन प्रचंड वीर और बेचन दोनों अंधाधुंध लड़े दोपहर से शाम हो गई लेकिन दोनों लड़ते रहे। लोग भी उनको लगातार देखते रहे। कभी बेचन का पलड़ा भारी लगता तो कभी लगता कि प्रचंड वीर जीतने वाला है। 

अंत में सूरज सूरज डूबने से थोड़ा थोड़ी देर पहले पसीने और खून से लथपथ बेचैन नहीं प्रचंड वीर को दोनों हाथों से उठा और उठा बरगद के पेड़ की जड़ों में दे मारा सूर्य छुपने के साथ ही प्रचंड वीर की पहलवानी का भी सूरज अस्त हो गया।

उसके बाद गांव वाले बेचन को कंधे पर उठाकर गांव में ले आए और उसी दिन से बेचैन का नाम बेचन दास पहलवान पड़ गया। उस जमाने में बहुत ही कम लोगों को बेचन दास पहलवान का असली नाम जानते थे।

भूतिया चुड़ैल की कहानी | भूत और चुड़ैल की कहानी

पहलवान की शादी त्रिलोचिनी से हुई थी। त्रिलोचिनी बेहद ही सुंदर और बड़े-बड़े नैन नक्श वाली थी। त्रिलोचिनी के रूप की चर्चा आसपास के सभी गांव में थी। कुछ लोगों ने तो त्रिलोचिनी पर बुरी नजर भी डाली लेकिन बेचन दास पहलवान के डर के कारण किसी की भी कुछ करने की हिम्मत नहीं थी।

उसी बरगद के पेड़ के नीचे बेचन दास पहलवान सुबह-सुबह कुश्ती और उड़ी (लंबी खुद वाला खेल, जिसमे मिट्टी का छोटा टीला बनाकर उसपर कूदा जाता है) का अभ्यास करता था। त्रिलोचिनी उसका साथ देती थी। दोनों में बेहद ही अटूट और गहरा प्रेम था। गांव वाले उन दोनो पर बहुत गर्व करते थे। दोनो जीवन में बहुत खुश और संतुष्ट थे।

लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही। एक दिन बेचन दास पहलवान को किसी जहरीले सांप ने काट लिया और घंटे भर में ही पहलवान का पूरा शरीर नीला पड़, ठंडा हो गया।

त्रिलोचिनी ने जब बेचन दास की मौत की खबर सुनी तो वह सन्न रह गई। ना उससे कुछ बोला गया, ना उससे रोया गया। उसी बरगद के पेड़ के नीचे बेचन दास पहलवान की चिता को आग के हवाले कर दिया गया।

पहलवान के मरने के बाद लोगों को खुली छूट मिल गई थी। सांत्वना देने के बहाने त्रिलोचिनी को लुभाने की। कुछ लोगों ने तो त्रिलोचिनी को लुभाने के लिए बहुत प्रलोभन दिए। लेकिन त्रिलोचिनी ने सबको करारा जवाब दिया। कई लोगों को तो सभी गांव वालों के सामने बेइज्जत भी किया। बेचन दास पहलवान के मरने के बाद भी वह उसी की थी, जितना जिंदा रहते थी।

लगभग दो महीने बाद पता चला की त्रिलोचिनी गर्भवती है। सभी लोगों को त्रिलोचिनी के चरित्र पर शंका होने लगी, और इस शंका का फायदा उन लोगों ने उठाया जिनको त्रिलोचिनी ही ने सरेआम बेइज्जत किया था, उन लोगों ने खबर फैला दी कि यह त्रिलोचिनी का नाजायज बच्चा है।

गांव पंचायत बैठाई गई, त्रिलोचिनी ने गांव वालों को कोई सफाई नहीं दीी, सिर्फ इतना कहा कि यह बच्चा पहलवान का ही है। लेकिन पंचायत के लोगों ने त्रिलोचिनी पर भरोसा नहीं किया और गांव से बाहर निकाल दिया।

त्रिलोचिनी को पंचायत के निर्णय से कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि पहलवान की मौत के बाद त्रिलोचिनी को किस गांव से कोई लगाव नहीं रह गया था।

गांव से निकाले जाने के बाद त्रिलोचिनी ने उसी बरगद के पेड़ के नीचे एक छोटी सी झोपड़ी बना ली। वैसेे भी  पहलवान की मरने के दुख में उसने खाना पीना कम कर दिया था।

कुमल्हा कर उसका पूरा शरीर मात्र हड्डी का ढांचा ही रह गया था। कुछ ही महीनों में उसकी उम्र 20 साल बढ़कर दिखने लगी थी और वह एक बुजुर्ग महिला की तरह बन गई थी।

अस्त व्यस्त सफेद साड़ी में, कांतिविहीन झुर्रीदार चेहरे, खुले बालों में वह बहुत भयावह दिखाई देती थी। उसका व्यवहार भी बिल्कुल अजीब हो गया था।

त्रिलोचिनी उस बरगद के पेड़ के नीचे बैठे बैठे खुद से बातें करती थी। वो ये मानने लग गई थी की उसका पति और पहलवान अब भी जिंदा है और यही बरगद के पेड़ के नीचे कुश्ती और उड़ी का अभ्यास कर रहा है।

“बस आप थोड़ी और कोशिश करो, आधा हाथ और कुदो फिर आप सबको पछाड़ दोगे“ “आज अभ्यास में आपका मन नही रहा” जैसी आवाज बरगद का पेड़ के पास रात भर सुनी जा सकती थी।

कभी कभी त्रिलोचिनी रात में उठकर जोर जोर से ताली और ढोल बजाने लगती। जैसा पहलवान के कुश्ती जितने पर करती थी।

चुड़ैल की कहानी | चुड़ैल की कहानी सच्ची घटना

गांव वालों ने रोशनी को जीते जी भूत चुड़ैल मान लिया था। कोई भी इंसान उससे बात नहीं करता था। त्रिलोचिनी ही रात के समय गांव के कुए पर पानी भरने आती थी। तब गांव की औरतों से दो चार बातें कर लेती थी। 

गांव की औरतें भी उसके गर्भवती पेट को देख कर उस पर दया दिखाकर कभी-कभी उसे कुछ खाने को दे देती थी। 

एक दिन गांव में बहुत जोर से बारिश हो रही थी। काले बादल, घनघोर अंधेरी रात में त्रिलोचिनी प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी और दर्द से जोर जोर से चिल्ला रही थी।

तेरी रात में बिजली की चमक में काली अंधेरी रात में बिजली की चमक से बरगद के पेड़ के नीचे बनी त्रिलोचन की झोपड़ी बहुत ही भयावह डरावनी लग रही थी। फिर भी गांव की एक औरत बहुत हिम्मत करके त्रिलोचिनी के पास गई। त्रिलोचिनी ने मरे हुए बच्चे को जन्म दिया था।

उस औरत ने त्रिलोचिनी को बताया कि बच्चा जिंदा नहीं है मर गया है। तो त्रिलोचिनी शेरनी की तरह उस औरत पर झपटी और उसके हाथ से अपना मरा हुआ बच्चा छीनते हुए बोली – नहीं मेरा बच्चा जिंदा है वह बस अभी सो रहा हैै। तुम यहां से भाग जाओ और मेरे बच्चे को सोने दो।

त्रिलोचन इनकी त्रिलोचिनी के दांत और आंखे बाहर आ गए थे। नाक और मुंह में खून उतर आया था काली रात में चमकती बिजली की चमक से उसका चेहरा बहुत ही डरावना लग रहा था। वह औरत तुरंत वहां से भाग खड़ी हुई थी।

दो दिन तक त्रिलोचिनी को किसी ने भी नहीं देखा थाा। बस बरगद के पेड़ के नीचे से लोरी की आवाज आती थी। फिर एक दिन त्रिलोचिनी ने जरीदार रंगबिरंगी साड़ी निकाली, जो उसने पहलवान से शादी करते समय पहनी थी। त्रिलोचन ने साड़ी पहनी सारे गहने पहने और आंखें चेहरों पर काजल लगाया और माथे पर ढेर सारा सिंदूर लगाकर कुए पर पानी भरने आई।

डायन की कहानी | डायन की आवाज

गांव की औरतों ने त्रिलोचिनी से पूछा कि, त्रिलोचिनी तुम्हें क्या हो गया है यह कैसा भेष बना रखा है तुमने। “एक बुढ़िया ने हुए की जगत पर पूछा” अरे काकी आज नन्ही के बाबा यहां आने वाले हैं वह नन्नी को देखकर बहुत खुश होंगे।

नन्नी कौन नन्नी?

अरे काकी मेरी छोटी बिटिया, बहुत बदमाश है वह पूरा दिन बस होती ही रहती हैं अब इसके बाबा आएंगे तब जागेगी।

इस पर बुढ़िया कुछ जवाब नहीं दे पाई बस आंखें फाड़ कर त्रिलोचिनी को देखती रही।

उसी रात त्रिलोचिनी ने बरगद के पेड़ के नीचे बने झोपड़े के पास एक छोटा गड्ढा खोदा और अपनी मरी हुई बिटिया को उस गड्ढे में रखकर उसके पास अपने सारे गहने और कपड़े उतार कर रख दिया और गड्ढे को मिट्टी से ढक दियाा। 

इसके बाद त्रिलोचिनी ने एक सफेद साड़ी पहनी और दूसरी सफेद साड़ी से झोपड़ी के ऊपर चढ़कर खुद को फांसी लगा ली।

कहा जाता है कि किसी की भी उसे झोपड़ी के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई और त्रिलोचिनी की लाश को गिद्धों ने नोच नोच कर खा डाला। त्रिलोचिनी की सफेद साड़ी के चिथड़े भी कई दिनों तक बरगद के पेड़ पर ऐसे ही लटकते रहे थे।

 त्रिलोचिनी की मौत के साल भर बाद बरगद का पेड़ भी सूख गया था (जिस का वैज्ञानिक कारण बताया जाता है कि बरगद के पेड़ के पास वाली नहर सूख गई थी, हो सकता है पेड़ के सूखने का कारण भी वह नहर ही हो)

जब गांव में जब गांव में जन्म के समय एक दो बच्चों की मौत हो गई। तो लोग उसको त्रिलोचिनी की घटना से जोड़ने लगे।

गांव वालों ने तांत्रिक को बुलाकर बरगद के पेड़ के तने पर धागे लपेट दिए और झोपड़ी की जगह एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया। जहां सिर्फ गर्भवती महिला ही ही जा सकती थी और धागा लपेट कर अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए आशीर्वाद आशीर्वाद मांगते थी।

मेरे दादाजी ने भी मेरे पिताजी के जन्म से पहले ही वहां जाकर भागी लपेटे थे। और मेरी माता जी ने मेरे लिए भी ऐसा ही किया था।

जब मैंने बहुत जिंदगी तब मेरी दादी ने मुझे यह कहानी सुनाई जिसके बाद में कई रातों तक सो नहीं पाया था आंख बंद करते ही बरगद का सूखा पेड़ और त्रिलोचिनी की भयावह सूरत सामने आ जाती थी।

उम्मीद है आपको बरगद के पेड़ वाली चुड़ैल की कहानी अच्छी लगी होगी। वैसे बड़े होने के बाद मैंने भूत प्रेतों पर विश्वास करना बंद कर दिया। 

लेकिन आज तक मेरी कभी हिम्मत नहीं हुयी की मई उस बरगद के पेड़ को देखने जाऊं। 

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