विक्रम बेताल की कहानी भाग 1 | विक्रम बेताल की कहानी | Vikram Betal Ki Kahani

विक्रम बेताल की कहानी का अगला भाग सुनाने वाले है। बेताल के द्वारा विक्रमादित्य को सुनाई गई कहानियां बच्चे और बूढ़े बड़ी उत्सुकता के साथ सुनते है।

आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 1

विक्रम बेताल की कहानी


विक्रम बेताल की कहानी भाग 1 | विक्रम बेताल की कहानी

बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन राजा का शासन था। राजा गंधर्व सेन की 4 रानियां और 6 लड़के थे। राजा के सभी पुत्र बहुत ही बलवान और चतुर थे। उन्हीं में एक विक्रम भी थे। संयोगवश एक दिन राजा गंधर्वसेन की मृत्यु हो जाती हैं और उनकी जगह राजा का बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठता है और धारा नगरी का संचालन करता है।

बहुत ही राजा शंख बहुत बड़ा अभिलाषी प्रवृत्ति का इंसान था। उसका मन राजकाज में नहीं लगता था राजा संघ की विलासिता के कारण धारा नगरी की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होने लगी और राजकोष घटने लगाा। दुश्मनों के नजरे भी अब धारा नगरी पर पड़ने लगी थी। प्रजा और सभी मंत्रीगण चाहते थे कि गंधर्वसेन राजा के पुत्र विक्रम राजा बने और गंधर्वसेन धारा नगरी का संचालन करें।

विक्रम से भी अपनी प्रजा और धारा नगरी की दुर्दशा देखी नहीं जा रही थी सभी लोग विक्रम के साथ थे। एक दिन विक्रम ने कुछ सिपाहियों की मदद से राजा शंख को मार डाला और खुद राजा बन गया। जिसके बाद धारा नगरी की उन्नति होने लगी और धीरे धीरे वह पूरे जंबू दीप (भारत) का राजा बन गया। 

एक दिन राजा विक्रम के मन में विचार आया कि उसे घूम कर यात्रा करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने है उनको देख कर आना चाहिए। राजा विक्रम ने अपने छोटे भाई भृतहरि को राज्य का संचालन सौंपा और खुद योगी बनकर राज्य भ्रमण के लिए निकल पड़े।

धारा नगरी में एक ब्राह्मण देवता तप करते थे। जिसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे एक फल दिया और कहा कि जो भी इस फल को खाएगा वह अमर हो जाएगा और उसको अमरत्व की प्राप्ति हो जाएगी। 

विक्रम बेताल की कहानियां | विक्रम बेताल की कहानी भाग 1

ब्राह्मण ने अमरफल लाकर अपनी पत्नी को दिया और सारी बात बता दी। ब्राह्मणी बोली कि हम इस अमरफल को खा कर क्या करेंगे, क्या हम भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते है और इस फल को  खाने के बाद हमे पूरी जिंदगी भिक्षा मांग कर ही गुजारनी होगी।

इससे अच्छा मरना ही उचित है और आप इस फल को ले जाकर राजा को दे दो, ताकि राजा लंबी उम्र तक जीवित रहे और राज्य में सुख समृद्धि बनी रहे। राजा इस अमरफल के बदले जो कुछ भी धन दे आप उसको ले आना जिससे हमारा भी जीवन यापन हो जाए।

ब्राह्मण अपनी पत्नी की पूरी बात सुनकर अमरफल लेकर राजा भृतहरि के पास जाता है और सारा हाल बताता है। राजा भृतहरि ने ब्राह्मण से अमरफल लिया और ब्राह्मण को स्वर्ण मुद्राएं देकर विदा कर दिया।

राजा भृतहरि अपनी रानी पिंगला को बहुत ज्यादा प्रेम करता था। राजा वह अमरफल ले जाकर अपनी रानी पिंगला को दे दिया। रानी की मित्रता महल के कोतवाल से थी, रानी भी कोतवाल को मन ही मन बहुत प्रेम करती थी इस वजह से राजा के जाने के बाद रानी ने वह अमरफल कोतवाल को दे दिया। 

कोतवाल नगर की एक वैश्या से प्रेम करता था तो कोतवाल में वह अमरफल ले जाकर उसे वैश्या को दे दिया। वैश्या ने सोचा कि वह इस फल को खाकर अमर होकर क्या करेगी वह इस पापी नर्क सामान जीवन को और ज्यादा नहीं जीना चाहती। 

वह खुद इस अमरफल को खाए इससे अच्छा है कि वह इस अमरफल को राजा को दे आए ताकि राजा लम्बी  जीवित रह सके। यदि राजा जीवित रहेंगे तो प्रजा में सुख समृद्धि बनी रहेगी और सब का भला होगा। 

वैश्या अमरफल को लेकर राजा भृतहरि के पास जाती हैं और उनको दे देती है। राजा भृतहरि अमरफल के बदले उस वेश्या को बहुत धन दिया। जब राजा भरतरी ने उस अमरफल को अच्छी तरह से देखा तो उसको पहचान लिया और उनके मन में सवाल आया की यह अमरफल तो मैंने रानी पिंगला को दिया था। 

राजा भृतहरि सीधा महल में जाता है और अपनी रानी से अमर फल के बारे में पूछता है। तब रानी कहती है कि राजन उसे तो मैंने खा लिया। तभी राजा भृतहरि वह अमरफल निकालकर रानी के सामने रख देता है। डर जाती है और पूरी बात राजा भरतरी को बता देती है।

जब राजा भृतहरि ने पूरी बात का पता लगाया तो राजा को ज्ञात हुआ कि वह सच बोल रही है। जिसके बाद राजा नहीं कोतवाल को बुलाया और कोतवाल ने भी पूरी बात बताई कि उसने यह अमरफल रानी से लेकर नगर की वैश्या को दिया था। 

जिसके बाद राजा भृतहरि बहुत दुखी हो गया और उन्होंने सोचा कि यह दुनिया एक मायाजाल है इसमें कोई भी अपना नहीं है। राजन ने अमरफल लिया और उसे खुद ही खा लिया और बाद में राजपाट छोड़कर योगी का भेष बनाकर जंगल में तपस्या करने चले गया।

राजा भृतहरि के जंगल में जाने के पश्चात धारा नगरी की गद्दी खाली हो गई थी। जब भगवान इंद्र को उसके बारे में पता चला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की सुरक्षा के लिए भेज दिया। वह देव धारा नगरी में ही रहकर राज्य की सुरक्षा करने लगा। जब राजा विक्रम को राजा भृतहरि की बात का मालूम हुआ तो वह वापस अपने देश लौट आए।

विक्रम बेताल | विक्रम बेताल की कहानी | vikram betal story in hindi

जब आधी रात आधी रात के समय जब राजा विक्रम धारा नगरी में प्रवेश कर रहे थे। तब भगवान इंद्र के द्वारा भेजे गए देव ने विक्रम को रोका।  

तब राजा विक्रम ने कहा - मैं यहां का राजा विक्रम हूं यह मेरा राज्य है। और तुम मुझे रोकने वाले कौन होते हो।  

देव बोलता है - मुझे भगवान इंद्र ने इस राज्य की सुरक्षा के लिए भेजा है यदि तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो पहले मुझ से लड़ो और यह सिद्ध करो कि तुम ही राजा विक्रम हो।

दोनों में युद्ध होता है और राजा विक्रम थोड़ी ही देर में देव को हरा देते है। तब देव बोलता है कि हे राजन आपने मुझे हरा दिया मैं आपको जीवनदान देता हूं।

उसके बाद देव राजा विक्रम को एक कथा का सुनाता है

एक नगर में एक ही नक्षत्र में आप जैसे तीन आदमी जन्म में थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के घर में और तीसरे ने कुम्हार के घर में जन्म लिया।  

तुम धारा नगरी के राजा बने, तेली पाताल लोक में राजा बना, और तीसरा महान साधु बना। आपसी शत्रुता तथा लोभ के कारण कुम्हार ने योग साधना के अर्जित ज्ञान से तेली को मारकर श्मशान में बनी पीपल के पेड़ में लटका दिया और अब वह आपको मारने का अवसर तलाश रहा है। आप उससे सावधान रहना।

 इतना कहकर भगवान इंद्र द्वारा भेजा गया देव वापस चला जाता है और राजा विक्रम भी अपने महल में आ जाते है। राजा विक्रम को देखकर सभी को बहुत खुशी होती है और पूरे धारा नगरी में आनंद और हर्ष उल्लास का माहौल छा जाता है।

एक दिन शांतिशील नाम का एक योगी राजा विक्रम की दरबार में आता है और राजा विक्रम को एक फल देता है राजा विक्रम को शक होता है कि देव ने जिस इंसान के बारे में राजा विक्रम को बताया था कहीं यह वही व्यक्ति तो नहीं। सोचकर राजा मैंने उस फल को नहीं खाया और उसे भंडारी को दे दिया। 

वह योगी रोजाना राजा के दरबार में आता और राजा को एक फल देकर चला जाता। संयोगवश एक दिन राजा विक्रम अपने अस्तबल को देखने गए, जहां योगी पहुंचा और राजा के हाथ में फल दे दिया राजा विक्रम ने बातों ही बातों में उस फल को उछाला तो वह फल राजा के हाथ से छूटकर धरती पर गिर गया और उसी समय एक बंदर ने झपट्टा मारकर उस फल को उठा लिया और फोड़ दिया।

उस फल में एक लाल रतन निकला जिसकी चमक से सभी की आंखें चौंधियाँ जाए। राजा विक्रम को बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ और राजा ने योगी से पूछा कि आप यह लाल रतन मुझे क्यों देकर जाते है।

योगी ने कहा - हे राजन राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी इनके घर कभी भी रिक्त हाथ नहीं जाना चाहिए।

राजा ने भंडारी को बुलाया और सभी फल मंगवा कर उनको काटने को कहा। फल काटने के बाद सभी में से लाल रत्न निकले, इतना रत्न लाल रत्न देकर राजा को बहुत खुशी हुई और जोहरी को बुलवाकर लाल रत्नों का मूल्य पूछा।

जोहरी ने कहा कि राजन इन लाल रत्नों का मूल्य इतना है कि इनको करोड़ों रुपए में भी नहीं बताया जा सकता। एक-एक लाल रत्न एक-एक राज्य के समान है। राजा योगी को अकेले में लेकर जाते है और फल देने का प्रयोजन जानना चाहते है। 

तब योगी बोलता है कि महाराज मैं अपनी कामना पूरी करने के लिए नदी के किनारे शमशान में एक मंत्र साधना कर रहा हूं। और उसके सिद्ध हो जाने पर मेरी कामना पूरी हो जाएगी। राजन यदि आप एक रात्रि मेरे पास रहो तो मेरी मंत्र साधना सिद्ध हो जाएगी। एक रात्रि आप अपने हथियार बांधकर अकेले मेरे पास आ जाना।

राजा विक्रम कहते है - अच्छी बात है योगी महाराज। यदि मेरी उपस्थिति से आपकी मंत्र साधना और आपकी कामना पूरी होती है तो मैं जरूर आऊंगा। इसके पश्चात योगी कुछ दिन राज्य में बिताकर अपने मठ में चला जाता।

जब वह दिन आता है तो राजा विक्रम अकेले योगी महाराज के पास जाते है। और योगी उनको अपने पास बैठा लेता है। थोड़ी देर बाद राजा विक्रम पूछते है महाराज मेरे लिए क्या आज्ञा है। तब योगी कहता है राजन यहां से दक्षिण दिशा में दो कोस दूर शमशान में एक मुर्दा लटका पड़ा है। आप उसको यहां लेकर यहां आओ।

तब तक मैं पूजा की विधि पूर्ण करता हु। योगी की बात सुनकर राजा विक्रम मसान की तरफ निकल पड़ते है। रात बहुत अंधेरी थी, चारों तरफ अंधकार फैला था, भूत प्रेत शोर कर रहे थे, आसमान से पानी बरस रहा था, साँप आकर पैरों में गिर रहे थे लेकिन हिम्मतवान राजा विक्रम आगे बढ़ते गए। 

जब राजा मसान में पहुंचा तो भूत प्रेत आदमियों को मार रहे थे, शेर दहाड़ रहे थे, हाथी झिंगाट रहे थे लेकिन राजा विक्रमादित्य बेधड़क होकर आगे चलते गए। जब राजा पीपल के पेड़ पेड़ के पास पहुंचे तो देखा पेड़ की जड़ से लेकर पेड़ की शीर्ष तक आग धधक रही है। राजा सोचता है कि यह वही पीपल का पेड़ है जिसके बारे में योगी ने मुझे बताया था। 

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी

तभी राजा को देव की बात याद आती है जिसने बताया था कि योगी किस प्रकार से राजा की जान लेने का अवसर ढूंढ रहा है।

राजा पीपल के पेड़ पर चढ़ता है और तलवार से रस्सी काट कर मुर्दे को नीचे गिरा देता है। तभी मुर्दा जोर-जोर से रोने लगता है। राजा विक्रम नीचे आकर पूछते है - तुम कौन हो? 

तभी मुर्दा खिलखिला कर हंसता है। राजा विक्रम को बहुत आश्चर्य होता है। तभी मुर्दा वापस से पीपल के पेड़ पर जाकर लटक जाता है। 

राजा विक्रम दुबारा पेड़ पर चढ़ते है और रस्सी काटते ही मुर्दे को अपने बगल में दबा लेते है और नीचे आते है। 

राजा विक्रम बोलते है - बताओ तुम कौन हो मुर्दा चुप रहता है ? 

मुर्दा कुछ नहीं बोलता, तब राजा विक्रम में मुर्दे को एक चादर में बांधा और योगी के पास ले जाने के लिए निकल पड़ते है।

रास्ते में मुर्दा बोला - मैं बेताल हूं, और तुम कौन हो? कहां लेकर जा रहे हो मुझे?

राजा विक्रम बोलते है - मेरा नाम विक्रम है। मैं धारा नगरी का राजा हूं और एक सन्यासी योगी के कहने पर मैं तुमको उसके पास लेकर जा रहा हूं। 

तब बेताल बोला - मैं एक शर्त पर तुम्हारे साथ चलूंगा, यदि तुम रास्ते में बोलोगे तो मैं वापस से पीपल के पेड़ पर जाकर लटक जाऊंगा।

तब राजा विक्रम बेताल की बात मान लेते है फिर बेताल बोलता है - पंडित, चतुर और ज्ञानी के दिन अच्छी-अच्छी बातों में गुजरते है लेकिन मूर्खों के दिन झगड़े और नींद में गुजरते है। अच्छा है कि हमारा रास्ता अच्छी भली बातों की चर्चा में गुजर जाए। 

बेताल बोला - राजन मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं लेकिन तुम कुछ भी नहीं बोलोगे और ना ही कोई सवाल जवाब करोगे।

इसके पश्चात बेताल राजा विक्रम को कहानी सुनाना प्रारंभ करता है।

 विक्रम बेताल की कहानियां  :-

बेताल ने राजा विक्रम को उस एक रात में 24 कहानियां सुनाई थी और अंतिम कहानी उस योगी की थी जिसके कारण बेताल विक्रम बेताल की कहानियों को एक जगह संग्रहित कर के उसको बेताल पच्चीसी नाम दिया गया।

आगे आने वाले भाग में हम आपको विक्रम बेताल की कहानियां , विक्रम बेताल की कहानी के सभी भाग सुनाएंगे।जिसमे आपको पता चलेगा की बेताल ने कौन कौनसी ज्ञानवर्धक कहानियां राजा विक्रम को सुनाई थी। 

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