विक्रम बेताल की कहानी भाग 4 | बेताल पच्चीसी की कहानी | Vikram Betal Ki Kahani

विक्रम बेताल की कहानी का अगला भाग सुनाने वाले है। बेताल के द्वारा विक्रमादित्य को सुनाई गई कहानियां बच्चे और बूढ़े बड़ी उत्सुकता के साथ सुनते है।

आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 4

विक्रम बेताल की कहानी भाग 4

सबसे ज्यादा पुण्य मिलेगा | विक्रम बेताल की कहानी भाग 4 | विक्रम बेताल की कहानी

वर्धमान नाम का एक नगर था। जहाँ का राजा रूपसेन था। रूपसेन बहुत ही दयालु और न्यायप्रिय राजा था। एक बार रूपसेन के यहाँ एक वीरवार नाम का राजपूत नौकरी के लिए आया। 

रूपसेन ने वीरवर से पूछा - खर्च के लिए क्या चाहिए? तो उसने उत्तर दिया की "मुझे हजार तोला सोना चाहिए।"

दरबार में बैठे सभी लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ। रूपसेन ने वीरवार से पूछा - "तुम कितने लोगो हो।" 

वीरवर बोला - "मै, मेरी पत्नी,मेरा बेटा और बेटी।" 

राजा को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर चार लोग इतने धन का क्या करेंगे? तब रूपसेन ने सोचा की कोई न कोई कारण तो अवश्य है। फिर उसने वीरवर की बात मान ली।

उसी दिन से वीरवर भंडारी के पास जाकर एक हजार तोला सोना लेकर अपने घर आता। एक हजार तोले सोने में से वीरवर आधा सोना ब्राह्मणो में बांटता और बचे आधे तोले सोने के दो बराबर हिस्से कर मेहमानो, वैरागियों और सन्यासियों में बाटं देता। 

वह दुसरो से भोजन बनवाकर पहले गरीबो को देता और फिर जो बचता उसे अपनी स्त्री और अपने बच्चो को खिलता और स्वयं  खाता। उसका कार्य था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर राजा के पलंग की चोकीदारी करनी थी। कभी भी राजा को किसी भी वस्तु की जरूरत होती तो वह हाजिर रहता था। 

विक्रम बेताल की कहानियां | विक्रम बेताल की कहानी भाग 4

एक बार आधी रात के समय राजा को किसी के रोने की आवाज आने लगी। वह आवाज मरघट की तरफ से आ रही थी। राजा ने वीरवर को आवाज लगयी तो वह राजा के समक्ष उपस्थित हो गया। 

राजा रूपसेन ने वीरवर को कहा - "मुझे मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज आ रही है। जाओ और पता लगाओ की इतनी रात गये कौन रो है? और क्यों रो रहा है" 

राजा का आदेश सुनकर वीरवर तत्काल मरघट की तरफ चल देता है। मरघट पर जाकर देखा – सिर से पांव तक गहने पहने एक स्त्री नृत्य कर रही है, कभी कूद रही है, कभी सिर पीट पीट कर रो रही है। लेकिन उसकी आंखों में एक भी आंसू की बूंद नहीं है। 

वीरवर ने पूछा – तुम कौन हो और रोती क्यों हो? 

उसने कहा – मैं राजलक्ष्मी हूं मैं इसलिए रोती हूं क्योंकि राजा रूपसेन के घर में खोटे काम होने लग गए है और अब वहां जल्दी ही दरिद्रता का डेरा पड़ने वाला है। मैं वहां से चली जाऊंगी और राजा दुखी होकर एक माह में मर जाएगा। 

यह सुनकर बीरबल ने पूछा – इस दुविधा से बचने का कोई उपाय है? 

स्त्री बोली – हां, यहां से पूर्व दिशा में एक देवी का मंदिर है यदि तुम वहां जाकर अपने बेटे का शीश चढ़ा दो तो राजा पर आने वाली सारी पता चल जाएंगी और राजा रूप से 100 सालों तक बेखटके राज करेगा। 

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वीरवर स्त्री की बात सुनकर घर आता है और अपनी पत्नी को जगा कर सारा हाल बताता है। तभी पत्नी ने बेटे को जगाया, बेटी भी जगी हुई थी। 

जब बालक ने पिता वीरवर की बात सुनी तो वह खुश होकर बोला – पिताजी आप मेरा शीश काटकर देवी के मंदिर चढ़ा दे। इससे एक तो आपकी आज्ञा पूरी होगी, दूसरा स्वामी का कार्य और तीसरा मैं देवी के चरणों में रहूंगा। इस से बढ़कर बात क्या होगी। आप शीघ्रता करें

वीरवर अपनी पत्नी को कहता है – अब तुम बताओ? 

पत्नी ने कहा – पत्नी का धर्म पति की सेवा करने में है।

इसके बाद चारों देवी के मंदिर जाते है। जहां वीरवार हाथ जोड़ कर कहता है – हे देवी, मैं अपने पुत्र की बलि दे रहा हूं आप मेरे राजा रूपसेन की उम्र 100 बरस करें और उनके राज्य पर आने वाली हर विपदा को दूर करें। 

इतना कहकर वीरवार ने जोर से तलवार चलाई जिससे पुत्र का शीश काटकर अलग हो गया। जिसके बाद बीरबल की पुत्री ने अपने भाई की मृत्यु देखी तो खुद भी तलवार से अपना शीश काटकर खत्म हो गई। 

विक्रम बेताल की कहानियाँ | विक्रम बेताल हिंदी कहानी

बेटा बेटी के मर जाने के बाद वीरवर की पत्नी भी दुखी हो गई और उन्होंने भी अपनी गर्दन काट ली। इसके पश्चात वीरवर ने सोचा – जब मेरा पूरा परिवार ही खत्म हो गया तो मैं जीवित रहेगा क्या करूंगा और उसने भी अपना सिर काट लिया। 

जब राजा को यह पता चला तो राजा रूपसेन बहुत दुखी हुआ। राजा ने सोचा – अकेले राजा के प्राणों की रक्षा करने के लिए 4 प्राणियों ने अपनी जान दे दी। 

राजा स्वयं को धिक्कारने लगा और राजा ने भी तलवार उठा कर जैसे ही अपनी गर्दन काटने लगा, तभी देवी प्रकट होकर बोली – मैं तेरे से बहुत प्रसन्न हूं जो तू वर मांगेगा मैं दे दूंगी। 

राजा – देवी यदि आप इतनी प्रसन्न हो तो उन चारों प्राणियों को जीवित कर दो। 

देवी ने अमृत छिड़का और चारों प्राणी फिर से जीवित हो गया। 

इतना कहकर बेताल राजा विक्रम से पूछता है – बताओ राजन सबसे ज्यादा पुण्य मिला? 

राजा विक्रम बोले – "राजा को सबसे ज्यादा पुण्य मिलेगा" 

बेताल ने पूछा – क्यों? 

राजा विक्रम बोले – राजा को सबसे ज्यादा पुण्य इसलिए क्योंकि स्वामी के लिए नौकर का प्राण देना धर्म है लेकिन नौकर के लिए राजा राजपाट छोड़ दें और अपनी जान देने को तैयार हो जाए तो यह बहुत बड़ी बात है। 

इतना सुनकर बेताल गायब हो गया और वापस पीपल के पेड़ पर जाकर लटक गया। राजा विक्रम फिर से दौड़ कर जाते है और बेताल को पकड़कर चल देते है।

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बेताल ने राजा विक्रम को उस एक रात में 24 कहानियां सुनाई थी और अंतिम कहानी उस योगी की थी जिसके कारण बेताल विक्रम बेताल की कहानियों को एक जगह संग्रहित कर के उसको बेताल पच्चीसी नाम दिया गया।

आगे आने वाले भाग में हम आपको विक्रम बेताल की कहानियां , विक्रम बेताल की कहानी के सभी भाग सुनाएंगे।जिसमे आपको पता चलेगा की बेताल ने कौन कौनसी ज्ञानवर्धक कहानियां राजा विक्रम को सुनाई थी। 

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