Karwachauth Ki Katha : करवा चौथ व्रत क्यों मनाते है?

Karwachauth Ki Katha : करवा चौथ के दिन महिलाएं निर्जल उपवास रखती हैं और सोलह शगार करके भगवान शिव और माता पार्वती गणेश जी तथा चंद्रमा की पूजन करती हैं। करवा चौथ व्रत में महिलाएं सभी नियमों का पालन करती हैं। करवा चौथ व्रत और करवा चौथ की कथा पत्नी अपने पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए रखती हैं। भारतीय इतिहास में करवा चौथ व्रत कथा का बहुत अधिक महत्व है। Karwachauth Ki Katha क्या है? करवा चौथ व्रत कथा क्या हैकरवा चौथ व्रत की कहानी क्या है?

  • करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर
  • विवाहित महिलाएं पूरे विधि विधान से करवा चौथ व्रत का पालन करती हैं।
  • करवा चौथ के दिन सर्वे सर्वे तार सर्वार्थ सिद्धि योग और योग हैं 

Karwachauth Ki Katha

आइए जानते हैं कि करवा चौथ व्रत कथा के समय महिलाएं किन नियमों का पालन करती है और करवा चौथ व्रत रखने का तात्पर्य क्या है? Karwachauth Ki Katha?

पत्नियां पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्यवती की कामना के लिए करवा चौथ व्रत कथा सुनती हैं तथा करवा चौथ व्रत रखती हैं। इस साल करवा चौथ व्रत कथा तिथि 13 अक्टूबर 2022 गुरुवार को है। करवा चौथ व्रत प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं निर्जल उपवास करती हैं और सोलह सिंगार करके भगवान शिव, माता पार्वती, करवा माता, गणेश जी तथा और चंद्रमा की पूजा करती है। करवा चौथ व्रत में महिलाएं सभी नियमों का पालन करती है और करवा माता से अपने पति की लंबी उम्र तथा अखंड सौभाग्यवती आशीर्वाद और परिवार की सुख समृद्धि के लिए कामना करते हैं। लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर करवा माता कौन है? और इस व्रत का नाम करवा चौथ व्रत कैसे पड़ाकरवा चौथ की कथा क्या है?

आइए जानते हैं करवा माता कौन है? करवा चौथ व्रत क्यों मनाते है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ रहती थी। करवा का पति अधिक उम्रदराज था। एक रोज जब करवा का पति नदी में स्नान करने गए तो नदी में स्नान करते समय मगरमच्छ ने उनके पैर को पकड़ लिया और धीरे धीरे गहरे पानी की तरफ खींचने लगा। करवा के पति करवा को अपनी सहायता करने के लिए बुलाने लगे। पतिव्रता स्त्री होने के कारण करवा में सतीत्व का बहुत बल था। करवा भाग कर गई और अपनी सूती साड़ी से एक धागा निकाल कर अपने सतीत्व के बल से मगरमच्छ को बांध दिया। साड़ी के सूत के उसी धागे से बांधकर करवा मगरमच्छ को भगवान यमराज के पास लेकर गई। 

यमराज ने कहा - हे देवी आप यहां कैसे और आप क्या चाहती हैं?

करवा ने कहा - हे भगवान इस मगरमच्छ ने मेरे पूजनीय पति का पैर पकड़ लिया और उनको समुद्र में पानी में गहराई की तरफ खींच खींच कर ले जा रहा था। इसलिए आप इस मगरमच्छ को मृत्युदंड दे और इस को नर्क में डालें।

यमराज ने कहा - देवी अभी इस मगरमच्छ की आयु लंबी है और अभी शेष है। मैं इसे ना मृत्युदंड दे सकता हूं और ना ही नर्क में डाल सकता हूं।

तब करवा ने कहा कि यदि आप इस मगरमच्छ को मृत्युदंड नहीं दे सकते तो मेरे पति को चिरायु का वरदान दे और यदि आप चिरायु का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल से आपको नष्ट कर दूंगी। 

करवा की बात सुनकर यमराज और चित्रगुप्त विकट स्थिति में पड़ गए और सोचने लगी कि क्या किया जाए?

 तब यमराज में मगरमच्छ को यमलोक में भेज दिया और करवा के पति को चिरायु का वरदान दिया। चित्रगुप्त ने भी करवा को सुख समृद्धि का वरदान दिया और कहा कि करवा तुमने अपने पति के प्राणों की रक्षा की है। जिससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं आज तुम्हें वरदान देता हूं कि जो भी महिला आज की तिथि के दिन संपूर्ण विश्वास और आस्था के साथ तुम्हारा व्रत करेंगी मैं उनके पति की आयु लंबी करूंगा और उनके सौभाग्य की रक्षा करूंगा। उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी का दिन था। जिस कारण करवा और चौथ के संयोग से इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण के कहने पर द्रुपद पुत्री तथा पांडव पत्नी द्रोपदी ने भी करवा चौथ का व्रत किया था। करवा चौथ व्रत कथा का उल्लेख वराह पुराण में भी मिलता है।

इसे भी पढ़ें :- होलिका दहन की कथा

Karwachauth Ki Katha | करवा चौथ व्रत कथा

एक साहूकार के एक लड़की और सात लड़के थे। सभी भाई अपनी बहन से बहुत बेहद प्रेम करते थे। सभी एक साथ ही खाना खाते थे। जब साहूकार की बेटी विवाह योग्य हो गई तो उसकी उसका विवाह कर दिया गया। विवाह के बाद बहन का पहला करवा चौथ आया। उस समय वह अपने मायके में थी। रात के समय जब साहूकार के सभी पुत्र भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी लाडली बहन को भी भोजन करने को कहा। बहन ने भाइयों से कहा कि आज उसका करवा चौथ का व्रत है और वह चांद को अर्ध अर्घ्य देकर ही भोजन करेंगी। सभी भाइयों ने बहन को भूख से व्याकुल देख। सभी भाई नगर के बाहर गए और एक पेड़ पर चढ़कर उन्होंने आग जला दी और अपनी बहन को छलनी में से चांद देखने को कहा। भाइयों ने कहा कि अब चांद निकल आया है तुम चांद को अर्घ्य देकर खाना खा लो।

साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों को बुलाया और चांद देखकर अर्घ्य देने को कहा कि आप भी चांद को देखकर अर्घ्य देकर भोजन कर ले। ननद की बात सुनकर सभी भाभियों ने कहा कि अभी चांद नहीं निकला बल्कि तुम्हारे भाइयों ने नगर के बाहर आग जलाकर तुम्हें चांद बताया है। भूख से व्याकुल साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात नहीं सुनती है और काल्पनिक चांद को अर्घ्य दे देती है। 

अर्घ्य देने के बाद जब साहूकार की बेटी भोजन करने लगती है तो जैसे ही पहला निवाला खाया तो उसमें बाल निकल आया, जब दूसरा निवाला खाया तो उसे छींक आ गई और जैसे ही उसने भोजन का तीसरा निवाला खाया तो उसके ससुराल से उसके पति की की खबर मौत की खबर मृत्यु की खबर मिल गई।

पति की मृत्यु का समाचार सुनकर साहूकार की बेटी फूट कर रोने लगी। जिसके बाद भाभियों ने पूरी घटना बताई और कहा कि करवा चौथ व्रत में नियम से पालन न करने पर चंद्र देवता और करवा माता नाराज हो गए हैं और उसी कारण उसके पति की मृत्यु हो गई है। यह बात सुनकर साहूकार की बेटी प्रण लेती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेंगी और अपने पति के प्राण वापस लाएंगी। एक साल के बाद जब करवा चौथ व्रत आता है तो साहूकार की बेटी अपनी भाभियों के साथ पूरे विधि विधान से करवा चौथ व्रत करने का प्रण लेती है और पूरे विधि विधान से करवा माता, चंद्र देवता और गणेश जी की पूजा करती हैं। इसके बाद साहूकार की बेटी का पति जीवित हो जाता है।

इसे भी पढ़ें :- Deepawali Ki Katha 


Karwachauth Ki Katha संपन्न हुई। माता करवा सभी को सुख समृद्धि दे। जो भी माता करवा की कथा सुने, पढ़े, व्रत करें सभी सुखी रहें।

आशा है दोस्तों आपको करवा चौथ व्रत कथाKarwachauth Ki Katha | करवा चौथ व्रत की कहानी पढ़कर अच्छा लगा होगा। आप Karwachauth Ki Katha को अपने परिवार के सदस्यों के साथ साझा करें। ताकि आने वाले करवा चौथ व्रत तक उनको Karwachauth Ki Katha याद हो जाए।

Related posts to Karwachauth Ki Katha

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

संपर्क फ़ॉर्म