विक्रम बेताल की कहानी भाग 10 | बेताल पच्चीसी की कहानी | Vikram Betal Ki Kahani

विक्रम बेताल की कहानी का अगला भाग सुनाने वाले है। बेताल के द्वारा विक्रमादित्य को सुनाई गई कहानियां बच्चे और बूढ़े बड़ी उत्सुकता के साथ सुनते है। बेताल के द्वारा सुनाई गयी सभी कहानियां बहुत ज्ञानवर्धक है जो बच्चों को जरूर सुनानी चाहिए।

आइए विक्रम बेताल की कहानीविक्रम बेताल की कहानी भाग 10

विक्रम बेताल की कहानी भाग 10

सबसे बड़ा त्यागी कौन ? | विक्रम बेताल की कहानी भाग 10

गांधार देश में ब्रह्मदत्त राजा का शासन था। उसी राज्य में एक वैश्य हिरण दत्त नाम का वैश्य भी रहता था। जिसके मदनसेना नामक एक पुत्री थी। 

एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गई हुई थी। तभी संयोगवश वहां सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ वहां आया हुआ था। 

धर्म दत्त मदनसेना को देख कर उस पर मोहित हो गया और मन ही मन उस से प्रेम करने लगा। धर्मदत्त घर लौट आया, लेकिन पूरी रात वह बेचैन रहा। 

अगले दिन वह वापस से बाग में गया। जहां मदन सेना अकेली बैठी थी। धर्मदत्त मदन सेना के पास जाकर अपने प्रेम का प्रस्ताव रखता है लेकिन मदनसेना इनकार कर देती है। 

बहुत कहने के बाद मदानसेना नहीं मानी तो धर्मदत्त ने कहा - यदि तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं तुम्हारे लिए अपनी जान दे दूंगा और इतना कहकर धर्मदत्त पास में बह रही नदी में कूद गया। 

मदनसेना सोचने लगी कि जब डूबने लगेगा तो अपने आप ही बाहर निकल आएगा। लेकिन काफी देर हो जाने के बाद जब धर्मदत्त बाहर नहीं आया तो मदनसेना उसको बचाने के लिए नदी में कूदी और उसको बचाकर नदी से बाहर ले आई।

मदनसेना - तुम कितने मूर्ख हो। तुम बाहर क्यों नहीं आए कितनी देर हो गई थी। यदि तुम नदी में डूब कर मर जाते तो। 

धर्मदत्त - मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। मैं अपने प्राण देने के लिए ही नदी में कूदा था, मुझे तैरना नहीं आता। 

यह जानकर मदनसेना का ह्रदय पिघल गया और वह कुछ नहीं बोली। 

फिर धर्मदत्त बोला - मदनसेना मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूं। मैं पूर्णिमा की रात्रि तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा, तुम जरूर आना।

मदनसेना - यदि ईश्वर ने चाहा तो मैं जरूर आऊंगी। इतना वार्तालाप होने के बाद वह अपने घर चली जाती है। 

उधर मदनसेना को देखने उसके घर लड़के वाले आए हुए थे। मदनसेना के माता पिता को लड़का पसंद था और लड़की वालों को भी मदानसेना पसंद थी। 

बात कुछ यूं थी कि लड़के की दादी का अंत समय नजदीक था और वह अपनी मृत्यु से पहले अपने पोते का ब्याह होते हुए देखना चाहते थे। इसलिए जल्दी ही मदनसेना का विवाह करने का फैसला कर लिया गया। 

विक्रम बेताल की कहानियां | vikram betal story in hindi

मदन सेना अपने माता-पिता की इच्छा को टाल न सकी और उसका विवाह कर दिया गया। 

जब मदनसेना अपने पति के पास गई तो वह उदास होकर बोली - यदि आप मुझ पर विश्वास करे और मुझे अभयदान दे तो मैं आपको एक बात बताऊं। 

पति ने विश्वास दिलाया और वचन दिया तो मदनसेना ने सारी बात बताई। 

मदनसेना की बात सुनकर पति ने उसको चरित्रहीन समझा और मन ही मन उसका त्याग कर दिया। मदनसेना को जाने की आज्ञा भी दे दी और उसका पीछा करने लगा। 

मदन सेना नए कपड़े और गहने पहन कर जा रही थी तभी रास्ते में उसको एक चोर मिला। जिसने मदनसेना का आंचल पकड़ लिया। 

मदनसेना - तुम मुझे छोड़ दो मेरे गहने लेना चाहते हो तो ले लो, बस मुझे जाने दो।

चोर बोला - मैं तो तुम्हें पाना चाहता हूं। 

मदन सेना ने चोर को भी सारा हाल बताया और कहा कि मैं पहले वहां जा आऊं फिर तुम्हारे पास आऊंगी। 

चोर ने उसे छोड़ दिया और चोर भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। थोड़ी देर पश्चात मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुंची। 

उसे देख कर धर्मदत् बहुत ही खुश हुआ। और पूछा की तुम अपने पति से बचकर यहां तक कैसे आई? 

तो मदनसेना ने सारी बात धर्मदत्त को बता दी। इसके पश्चात धर्मदत्त पर सभी बातों का बहुत असर पड़ा और उसने मदनसेना के साथ वक्त बिताना अच्छा नहीं लगा। उसने मदनसेना को समझा कर वापस उसके घर जाने के लिए कहा, तो मदनसेना अपने घर की तरफ चल पड़ी। 

रास्ते में फिर वह चोर के पास गई। चोर सबकुछ जानकर बहुत प्रभावित हुआ और उसे खुद पर ग्लानि होने लगी तो उसने मदनसेना को बिना कुछ किए ही वापस घर लौटने दिया। 

इस प्रकार मदनसेना सब से बचकर अपने पति के पास वापस आ गई। पति ने भी सारा हाल अपनी आंखों से देख लिया था तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और दोनों आनंद से रहने लगे। 

इतनी कहानी सुना कर बेताल बोला - हे राजन बताओ आपकी नजर में न्याय क्या कहता है? पति, चोर और ब्रह्मदत्त में कौन सबसे अधिक सबसे बड़ा त्यागी है? 

राजा विक्रम ने कहा - जो त्याग बिना स्वार्थ के किया जाए वही सच्चा त्याग है। चोर का त्याग सबसे बड़ा त्यागी है, क्योंकि पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने के कारण त्याग देता है धर्मदत्त का मन इसलिए बदल गया कि उसे भी यह डर लग रहा होगा कि कहीं इसका पति राजा के समक्ष जाकर उसको दंड ना दिलवा दे। लेकिन चोर का तो किसी को भी नहीं पता था इसके बावजूद चोर ने मदनसेना गहने भी नही लिए और न ही उसको कोई क्षति पहुंचाई। इसलिए उन दोनों में अधिक त्यागी चोर था।

राजा का जवाब सुनकर - बेताल बड़ा खुश हुआ और बोला राजा सच में तुम बहुत ही न्याय प्रिय हो। तुम्हारा न्याय विश्व विख्यात होगा।

बेताल हंसकर बोला - राजन तुमने मू्ह खोला, मैं चला।

इतना कहकर बेताल वापस से पेड़ पर जा लटका और राजा विक्रम वापस बेताल के पीछे-पीछे जाकर वेताल को पेड़ से नीचे उतारकर आगे बढ़ते है।

 सीख  -  कहानी से सीख मिलती है कि हमें अपने धर्म का पालन करना चाहिए और त्याग से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

तो आज की विक्रम बेताल की कहानी में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ सुनते रहिए Rahasyo Ki Duniya पर विक्रम बेताल की कहानियां

 विक्रम बेताल की कहानियां  :-

    बेताल ने राजा विक्रम को उस एक रात में 24 कहानियां सुनाई थी और अंतिम कहानी उस योगी की थी जिसके कारण बेताल विक्रम बेताल की कहानियों को एक जगह संग्रहित कर के उसको बेताल पच्चीसी नाम दिया गया।

    आगे आने वाले भाग में हम आपको विक्रम बेताल की कहानियां , विक्रम बेताल की कहानी के सभी भाग सुनाएंगे।जिसमे आपको पता चलेगा की बेताल ने कौन कौनसी ज्ञानवर्धक कहानियां राजा विक्रम को सुनाई थी। 

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